मायारानी––ऐसा होना ही चाहिए और दूसरी बात कौन-सी है?
भूतनाथ––दूसरे यह कि मुझसे आप अपने भेद न छिपाया कीजिये क्योंकि ऐयार का काम बिना ठीक-ठीक भेद जाने नहीं चल सकता।
मायारानी––मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, इसलिए मैं अपना कोई भेद तुमसे न छिपाऊँगी।
भूतनाथ––अच्छा, अब एक बात मैं आपसे और कहूँगा।
मायारानी––कहो!
भूतनाथ––नागर की जुबानी यह तो आपको मालूम ही हुआ होगा कि काशी में मनोरमा के तिलिस्मी मकान के अन्दर किशोरी के रखने का हाल अब कमलिनी जान गई है।
मायारानी––हाँ, नागर वह सब हाल मुझसे कह चुकी है।
भूतनाथ––ठीक है, तो आपने यह भी विचारा होगा कि किशोरी को उस मकान से निकाल कर किसी दूसरे मकान में रखना चाहिए।
मायारानी––हाँ, मेरी तो यही राय है।
भूतनाथ––मगर नहीं, आप किशोरी को उसी मकान में रहने दीजिये, इस बात की खबर मैं किशोरी के पक्षपातियों को दूँगा जिसे सुन कर वे लोग किशोरी को छुड़ाने की नीयत से अवश्य उस मकान के अन्दर जायेंगे, उस समय उन लोगों को ऐसे ढंग से फँसा लूँगा कि किसी को पता न लगेगा और न इसी बात का शक किसी को होगा कि मैं आपका तरफदार हूँ।
मायारानी––तुम्हारी यह राय बहुत अच्छी है, मैं भी इसे पसन्द करती हूँ और ऐसा ही करूँगी।
भूतनाथ––अच्छा तो अब आप यह बताइये कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह के साथ आपने क्या बर्ताव किया जो आपके यहाँ कैद हैं?
मायारानी––(ऊँची साँस लेकर) अफसोस, कमलिनी उन लोगों को यहाँ से छुड़ा ले गई और मेरी छोटी बहिन लाड़िली भी मुझे धोखा दे गई जिसका खुलासा हाल में तुमसे कहती हूँ।
महारानी ने अपना कुल हाल जो नागर से कहा था, भूतनाथ को कह सुनाया। मगर, अपने पुराने कैदी का हाल और यह बात कि चण्डूल ने उसके कान में क्या कहा था, भूतनाथ से भी छिपा रखा और उसके बदले में वह कहा जो नागर से कहा था। मगर, भूतनाथ ने उस जगह मुस्करा दिया जिससे मायारानी समझ गई कि भूतनाथ को मेरी बातों में कुछ शक हुआ।
मायारानी––जो कुछ मैं कह चुकी हूँ, उसमें एक बात झूठ थी और एक को मैंने छिपा लिया।
भूतनाथ––(हँस कर) वह बात शायद मुझसे कहने योग्य नहीं है!
मायारानी––हाँ, मगर अब तो मैं वायदा कर चुकी हूँ कि तुमसे कोई बात न छिपाऊँगी। इसलिए यद्यपि उस बात का भेद अभी तक मैंने नागर को भी नहीं दिया,