बिहारीसिंह––दो दिन के अन्दर ही अन्दर कुछ काम न चला तो समझ लेना चाहिए कि इस मुनादी का असर उलटा ही होगा।
मायारानी––खैर, जो कुछ नसीब में लिखा है भोगूँगी, इस समय बदहवास होने से तो काम नहीं चलेगा। मगर यह तो कहो कि तुम दोनों ऐयार ऐसी अवस्था में मेरी सहायता किस रीति से करोगे?
बिहारीसिंह––मेरे किये तो कुछ न होगा। मैं खूब समझ चुका हूँ कि वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों तथा कमलिनी का मुकाबला मैं किसी तरह नहीं कर सकता। देखो, तेजसिंह ने मेरा मुँह ऐसा काला किया कि अभी तक रंग साफ नहीं होता। न मालूम उसे कैसे-कैसे मसाले याद हैं। इसके अतिरिक्त तुम्हें अपने लिए शायद कुछ उम्मीद हो, मगर मैं तो बिल्कुल ही नाउम्मीद हो चुका हूँ और अब एक घंटे के लिए भी यहाँ ठहरना बुरा समझता हूँ।
मायारानी––क्या तुम वास्तव में ऐसा ही करोगे जैसा कह चुके हो?
बिहारीसिंह––हाँ बेशक मैं अपनी राय पवकी कर चुका हूँ। मैं इसी समय यहाँ से चला जाऊँगा और फिर मेरा पता कोई भी न लगा सकेगा।
मायारानी––(हरनामसिंह की तरफ देख के) और तुम्हारी क्या राय है?
हरनामसिंह––मेरी भी वही राय है जो बिहारीसिंह की है।
मायारानी––खूब समझ-बूझ कर मेरी बातों का जवाब दो।
हरनामसिंह––जो कुछ समझना था समझ चुका।
मायारानी––(कुछ सोचकर) अच्छा मैं एक तरकीब बताती हूँ, अगर उससे कुछ काम न चले तो फिर जो कुछ तुम्हारी समझ में आवे करना या जहाँ जी चाहे जाना।
बिहारीसिंह––अब उद्योग करना वृथा है, मेरे किए कुछ भी न होगा!
मायारानी––नहीं-नहीं, घबराओ मत, तुम जानते हो कि मैं इस तिलिस्म की रानी हूँ जौर इस तिलिस्म में बहत-सी अदभत चीजें हैं। मैं तुम दोनों को एक चीज देती हूँ जिसे देख कर और जिसका मतलब समझ कर तुम दोनों स्वयं कहोगे कि 'कोई हर्ज नहीं, अब हम लोग बात की बात में लाखों आदमियों की जान ले सकते हैं।'
हरनामसिंह––बेशक तुम इस तिलिस्म की रानी हो और तुम्हारे अधिकार में बहुत-सी अनमोल चीजें हैं परन्तु जब तक हम लोग उस वस्तु को देख नहीं लेते जिसके विषय में तुम कह रही हो, तब तक किसी तरह का वादा नहीं कर सकते।
मायारानी––मैं भी तो यही कह रही हूँ, तुम दोनों मेरे साथ चलो और उस चीज को खुद देख लो, फिर अगर मन भरे तो मेरा साथ दो, नहीं तो जहाँ जी चाहे चले जाओ।
हरनामसिंह––खैर; पहले देखें तो सही वह कौन सी अनूठी चीज है, जिस पर तुम्हें इतना भरोसा है।
मायारानी––हाँ, तुम मेरे साथ चलो, मैं अभी वह चीज तुम दोनों के हवाले करती हूँ।
मायारानी उठ खड़ी हुई और धनपत तथा दोनों ऐयारों को साथ लिए हुए वहाँ