पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१९७

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वीरेन्द्रसिंह आदि को तथा मुझे मारने में कठिनता ही काहे की थी?

नागर––यह कौन कहता है कि वीरेन्द्रसिंह आदि के मारने में उसे कठिनता है! इस समय वीरेन्द्रसिंह, उनके दोनों कुमार, किशोरी, कामिनी और तेजसिंह आदि कई ऐयारों को उसने कैद कर रक्खा है, जब चाहे तब मार डाले, और तुम्हें तो वह ऐसा समझती है जैसे तुम एक खटमल हो, हाँ कभी-कभी उसके ऐयार धोखा खा जाये तो यह बात दूसरी है। यही सबब था कि रिक्तग्रंथ हम लोगों के हाथ में आकर इत्तिफाक से निकल गया, परन्तु क्या हर्ज है, आज ही कल में वह किताब फिर महारानी मायारानी के हाथ में दिखाई देगी। यदि तुम हमारी बात न मानोगे तो कमलिनी तथा वीरेन्द्रसिंह इत्यादि के पहले ही मारे जाओगे। हम तुमसे कुछ काम निकालना चाहते हैं इसलिए तुम्हें छोड़े जा रहे हैं। फिर जरा सी मदद के बदले में क्या तुम्हें दिया जाता है, इस पर भी ध्यान दो और यह मत सोचो कि कमलिनी ने मुझे और मनोरमा को कैद कर लिया तो कोई बड़ा काम किया, इससे मायारानी का कुछ भी न बिगड़ेगा और हम लोग भी ज्यादा दिन तक कैद में न रहेंगे। जो कुछ मैं कह चुकी हूँ उस पर अच्छी तरह विचार करो और कमलिनी का साथ छोड़ो, नहीं तो पछताओगे और तुम्हारी जोरूभी बिलख-बिलख के मर जायगी। दुनिया में ऐश-आराम से बढ़कर कोई चीज नहीं है सो सब कुछ तुम्हें दिया जाता है, और यदि यह कहो कि तेरी बातों का मुझे विश्वास क्योंकर हो तो इसका जवाब अभी से यह देती हूँ कि मैं तुम्हारी दिलजमई ऐसी अच्छी तरह से कर दूँगी कि तुम स्वयं कहोगे कि हाँ, मुझे विश्वास हो गया। (मुस्कुरा कर और नखरे के साथ भूतनाथ की उँगली दबाकर) मैं तुम्हें चाहती हूँ इसीलिए इतना कहती हूँ, नहीं तो मायारानी को तुम्हारी कुछ भी परवाह न थी, तुम्हारे साथ रहकर मैं भी दुनिया का कुछ आनन्द ले लूँगी।

नागर की बातें सुनकर भूतनाथ चिन्ता में पड़ गया और देर तक कुछ सोचता रह गया। इसके बाद वह नागर की तरफ देखकर बोला, "खैर, तुम जो कुछ कहती हो मैं करूँगा और अपनी प्यारी स्त्री के साथ तुम्हारी मुहब्बत की भी कदर करूँगा!"

इतना सुनते ही नागर ने झट भूतनाथ के गले में हाथ डाल दिया और तब दोनों प्रेमी हँसते हुए उस छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर चढ़ गये


5

दिन दोपहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु समझाने-बुझाने की तरफ किसी का ध्यान नहीं। उसे कोई भी नहीं दिलासा देता, कोई धीरज भी नहीं बँधाता और कोई भी यह विश्वास नहीं दिलाता कि तुझ पर आई हुई बला टल जायेगी, यहाँ