पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१९१

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तू मेरी सामर्थ्य को भूल गया?

हरनामसिंह––नहीं, मैं आपकी सामर्थ्य को को नहीं भूला बल्कि आपकी सामर्थ्य ने स्वयं आपका साथ छोड़ दिया।

बिहारीसिंह और हरनामसिंह की बातें सुन कर मायारानी को क्रोध तो बहुत आया परन्तु इस समय क्रोध करने का मौका न देखकर वह तरह दे गयी। मायारानी बड़ी ही चालबाज और दुष्ट औरत थी, समय पड़ने पर वह एक अदने को बाप बना लेती और काम न होने पर किसीको एक तिनके बराबर भी न मानती। इस समय अपने ऊपर संकट आया हुआ जान उसने दोनों ऐयारों को किसी तरह राजी रखना ही उचित समझा।

मायारानी––क्यों हरनामसिंह, तुमने कैसे जाना कि मेरी सामर्थ्य ने मेरा साथ छोड़ दिया?

हरनामसिंह––वह तो इसी से जाना जाता है कि बेबस कैदी की जान लेने के लिए हम लोगों को ले जाना चाहती हो। उस बेचारे को तो एक अदना लड़का भी मार सकता है।

बिहारीसिंह––हरनामसिंह का कहना ठीक है बाहर खड़े होकर आपके हाथ से चलाई हुई एक तीर उसका काम तमाम कर सकती है।

मायारानी––नहीं; यदि ऐसा होता तो मैं उसे बिना मारे लौट न आती। मेरे कई तीर व्यर्थ गये और नतीजा कुछ भी न निकला!

बिसारीसिंह––(चौंक कर) सो क्यों?

मायारानी––उसके हाथ में एक ढाल है। न मालूम वह ढाल उसे किसने दी जिस पर वह तीर रोक कर हँसता है और कहता है कि अब मुझे कोई मार नहीं सकता।

बिहारीसिंह––(कुछ सोच कर) अब अनर्थ होने में कोई सन्देह नहीं, यह काम वेशक चण्डूल का है। कुछ समझ में नहीं आता कि वह कौन कम्बख्त है?

मायारानी––अब सोच-विचार में बिलम्ब करना उचित नहीं, जो होना था सो हो चुका, अब जान बचाने की फिक्र करनी चाहिए।

बाहारीसिंह––आपने क्या विचारा?

मायारानी––तुम लोग यदि मेरी मदद न करोगे तो मेरी जान न बचेगी और जब मुझ पर आफत आवेगी तो तुम लोग भी जीते न बचोगे।

बिहारीसिंह––हाँ, यह तो ठीक है, जान बचाने के लिए कोई-न-कोई उद्योग तो करना ही होगा।

मायारानी––अच्छा तो तुम लोग मेरे साथ चलो और जिस तरह हो उस कैदी को यमलोक पहुँचाओ। मुझे विश्वास हो गया कि उस कैदी की जान के साथ हम लोगों की आधी बला टल जायेगी और इसके बदले में मैं तुम दोनों को एक लाख दूँगी।

हरनामसिंह––काम तो बड़ा कठिन है!

यद्यपि बिहारीसिंह और हरनामसिंह अपने हाथ से उस कैदी को मारना नहीं चाहते थे, तथापि मायारानी की मीठी-मीठी बातों से और रुपये की लालच तथा जान