पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१९०

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निकल गये, क्योंकि थोड़ी देर से भीतर सन्नाटा-सा जान पड़ता है, न तो किसी की बातचीत की आहट मिलती है, न दीवार तोड़ने की।

मायारानी––(कुछ सोच कर) दीवार तोड़कर इस बाग के बाहर निकल जाना जरा मुश्किल है, मगर मुझे ताज्जुब मालूम होता है कि उन कैदियों की हथकड़ी-बेड़ी किसने खोली और दीवार तोड़ने का सामान उन्हें क्योंकर मिला! शायद तुम्हें धोखा हुआ हो।

बिहारीसिंह––नहीं-नहीं, मुझे धोखा नहीं हुआ, मैं पागल नहीं हूँ!

हरनामसिंह––क्या हम लोग इतना भी नहीं पहचान सकते कि यह दीवार तोड़ने की आवाज है?

मायारानी––(ऊँची साँस लेकर) हाय, न मालूम मेरी क्या दुर्दशा होगी! खैर, कैदियों के बारे में मैं पीछे सोचूँगी, पहले तुम लोगों से एक दूसरे काम में मदद लिया चाहती हूँ!

बिहारीसिंह––वह कौन-सा काम है?

मायारानी––मैंने जिस काम के लिए उसे कैद किया था वह न हुआ और न आशा है कि वह कोई भेद बताएगा, अतः अब उसे मार कर टण्टा मिटाया चाहती हूँ।

बिहारीसिंह––हाँ आपने उसे जिस तरह की तकलीफ दे रखी है उससे तो उसका मर जाना ही उत्तम है। हाय, वह बेचारा इस योग्य न था। हाय, आपकी बदौलत मेरे भी लोक परलोक दोनों बिगड़ गये! ऐसे नेक और होनहार मालिक के साथ आपके बहकाने से जो कुछ मैंने किया उसका दुःख जन्म भर न भूलूँगा।

मायारानी––और उन नेकियों को याद न करोगे जो मैंने तुम्हारे साथ की थीं।

बिहारीसिंह––खैर, अब इस विषय पर हुज्जत करना व्यर्थ है। जब लालच में आकर बुरा काम कर ही चुके तो अब रोना काहे का है।

हरनामसिंह––मुझे भी इस बात का बहुत ही दुःख है, देखा चाहिए क्या होता है। आजकल जो कुछ देखने-सुनने में आ रहा है उसका नतीजा अवश्य ही बुरा होगा।

मायारानी––(लम्बी साँस लेकर) खैर जो होगा देखा जायेगा मगर इस समय यदि सुस्ती करोगे तो मेरी जान तो जायेगी ही तुम लोग भी जीते न बचोगे।

बिहारीसिंह––यह तो हम लोगों को पहले ही मालूम हो चुका है कि अब उन बुरे कर्मों का फल शीघ्र ही भोगना पड़ेगा मगर खैर आप यह कहिए कि हम लोग क्या करें? जान बचाने की क्या कोई सुरत दिखाई पड़ती है?

मायारानी––मेरे साथ बाग के चौथे दर्जे में चलकर पहले उस कैदी को मारकर छुट्टी करो तो दूसरा काम बताऊँ।

हरनामसिंह––नहीं नहीं नहीं, यह काम मुझसे न हो सकेगा। बिहारीसिंह से हो सके तो इन्हें ले जाइए। मैं उनके ऊपर हर्बा नहीं उठा सकता। नारायण-नारायण, इस अनर्थ का भी कोई ठिकाना है।

मायारानी––(चिढ़कर) हरनाम, क्या तू पागल हो गया है जो मेरे सामने ऐसी बेतुकी बातें करता है? अदब और लिहाज को भी तूने एकदम चूल्हे में डाल दिया! क्या।