हैं। नीचे लिखी बातें हम लोगों ने सुनीं––
एक––न मालूम हम लोगों को कब तक यहाँ अटकना और राह देखना पड़ेगा।
दूसरा––अब हम लोगों को यहाँ ज्यादा दिन न रहना पड़ेगा। या तो काम हो जायेगा या खाली ही लौटकर चले जाने की नौबत आवेगी।
तीसरा––रंग तो ऐसा ही नजर आता है, भाई, जो हो, हमें तो यही विश्वास होता है कि वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग तहखाने में घुस गये क्योंकि पहले कभी एक आदमी तहखाने में आता-जाता दिखाई नहीं देता था, बल्कि मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि कल उस कब्रिस्तान में हम लोगों ने जिसे देखा था, वह कोई ऐयार ही था।
चौथा––खैर, और दो-तीन दिन में सब मालूम हो जाएगा।
औरत––तुम लोगों का काम चाहे जब हो, मगर मेरा काम तो आज हुआ ही चाहता है। माधवी और तिलोत्तमा को मैंने खूब ही धोखा दिया है। आज उसी कब्रिस्तान की राह से मैं उन दोनों को तहखाने में ले जाऊँगी।
एक––अब तुम्हें वहाँ जाना चाहिए, शायद माधवी वहाँ पहुँच गयी हो।
औरत––हाँ, अब जाती हूँ, पर अभी समय नहीं हुआ।
दूसरा––दम-भर पहले ही पहुँचना अच्छा है।
ये बातें सुनकर मैं उन लोगों को पहचान गया। वे रामू वगैरह धनपतिजी के सिपाही लोग थे और औरत चमेली थी।
इतना सुनते ही कमलिनी ने रोका और पूछा, "जिस खोह के मुहाने पर वे लोग बैठे थे, वहाँ कोई सलई का पेड़ भी है?"
इसके जवाब में उन दोनों ने कहा, "हाँ-ह, दो पेड़ सलई के वहाँ थे, पर उनके सिवाय और दूर-दूर तक कहीं सलई का पेड़ दिखाई नहीं दिया।"
कमलिनी––बस मैं समझ गयी। वह खोह का मुहाना भी तहखाने से निकलने का एक रास्ता है, शायद धनपति ने अपने आदमियों को कह रखा होगा कि मैं किशोरी को लिए हुए इसी राह से निकलूँगी तुम लोग मुस्तैद रहना, इसी से वे लोग वहाँ बैठे थे।
एक––शायद ऐसा ही हो।
कुमार––धनपति कौन है?
कमलिनी––उसे आप नहीं जानते। ठहरिए, पहले इन लोगों का हाल सुन लूँ तो कहूँगी। (उन दोनों की तरफ देखकर) हाँ, तब क्या हुआ?
उसने फिर यों कहना शुरू किया––
"थोड़ी ही देर में चमेली वहाँ से उठी और एक तरफ को रवाना हुई, हम दोनों भी उसके पीछे-पीछे चले और सुबह की सफेदी निकलना ही चाहती थी कि उस कब्रिस्तान के पास पहुँच गये जो तहखाने में जाने का दरवाजा है। हम दोनों एक आड़ की जगह में छिप रहे और तमाशा देखने लगे। उसी समय माधवी और तिलोत्तमा भी वहाँ आ पहुँचीं। तीनों में धीरे-धीरे कुछ बातें होने लगी जिसे दूर होने के सबब मैं बिलकुल न सुन सका। आखिर वे तीनों तहखाने में घुस गयीं और पहरों गुजर जाने पर भी बाहर न निकलीं। हम दोनों यह निश्चय कर चुके थे कि जब तक वे तहखाने से न निकलेंगी,