कमलिनी––यह तिलिस्मी खंजर है और इसमें बहुत से गुण हैं।
इन्द्रजीतसिंह––मैं सुनना चाहता हूँ कि इस खंजर में क्या-क्या गुण हैं। बल्कि और भी कई बातें पूछना चाहता हूँ मगर यकायक दुश्मन के पहुँचने से...
कमलिनी––खैर, ईश्वर की मर्जी, मैं खूब जानती हूँ कि सिवाय इस शैतान के और कोई यहाँ तक नहीं आ सकता, तिस पर भी इस दरवाजे को खोलने की इसे सामर्थ्य न थी, इसी से चुपचाप दुबका हुआ था। मगर फिर भी इसका यहाँ तक पहुँच जाना ताज्जुब मालूम होता है।
इन्द्रजीतसिंह––क्या तुम उसे पहचानती हो?
कमलिनी––हाँ, कुछ-कुछ शक तो होता है मगर निश्चय किये बिना कुछ नहीं कह सकती।
इन्द्रजीतसिंह––जो हो, मगर अब हम लोगों को यहाँ से निकल चलने के लिए जल्दी करनी चाहिए।
कमलिनी––पहले इस दरवाजे को बन्द कर लीजिये नहीं तो इस राह से दुश्मन के आ पहुँचने का डर रहेगा।
दरवाजे के दूसरी तरफ भी उसी प्रकार के दो हाथी बने हुए थे। कमलिनी के कहे मुताबिक आनन्दसिंह ने जोर से सूँड को दरवाजे की तरफ हटाया जिससे उस तरफ वाले हाथियों की सूँड ज्यों-की-त्यों सीधी हो गई और दरवाजा भी बन्द हो गया।
इन्द्रजीतसिंह––मालूम होता है कि इस तरफ से कोई दरवाजा खोलना चाहे तो इन हाथियों की सूँड़ों को, जो इस समय दरवाजे के साथ लगी हुई हैं, अपनी तरफ खींच कर सीधा करना पड़ेगा और ऐसा करने से उस तरफ के हाथियों की सूँड़ें दरवाजे के पास आ लगेंगी।
कमलिनी––आपका सोचना बहुत ठीक है, वास्तव में ऐसा ही है।
इन्द्रजीतसिंह––अच्छा, अब यहाँ से चल देना चाहिए, चलते-चलते इस खंजर का गुण भी कहो जिसकी करामात मैं अभी देख चुका हूँ।
कमलिनी––चलते-चलते कहने की कोई जरूरत नहीं, मैं इसी जगह अच्छी तरह समझा कर एक खंजर आपके हवाले करती हूँ।
उस खंजर में जो-जो गुण था उसके विषय में ऊपर कई जगह लिखा जा चुका है, कमलिनी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह को सब समझाया और इसके बाद खंजर के जोड़ की अँगूठी उनके हाथ में पहना कर एक खंजर उनके हवाले किया, जिसे पाकर कुमार बहत प्रसन्न हुए।
लाड़िली––(कमलिनी से) एक खंजर छोटे कुमार को भी देना चाहिए।
कमलिनी––(मुस्कुरा कर) आपकी सिफारिश की कोई जरूरत नहीं है, मैं खुद एक खंजर छोटे कुमार को दूँगी।
आनन्दसिंह––कब?
कमलिनी––यह दूसरा खंजर उसी तरह का मेरे पास है। इसे मैं आपको अभी दे देती मगर इसलिए रख छोड़ा है कि आप ही के लिए इस घर में अभी कई तरह का