में फर्क पड़ गया तो भी कुमार के बायें मोढ़े पर गहरी चोट बैठी। चोट खाते ही कुमार ने पुकारकर कहा, "सब कोई होशियार रहना! दुश्मन के हाथ में हर्बा है और वह मुझे जख्मी भी कर चुका है!"
यह हाल देख और सुनकर कमलिनी ने झट अपने तिलिस्मी खंजर से काम लिया। हम ऊपर लिख आये हैं कि उसकी कमर में दो तिलिस्मी खंजर हैं। उसने एक खंजर हाथ में लेकर उसका कब्जा दबाया और उसमें से बिजली की तरह चमक पैदा हुई जिससे कमलिनी के सिवाय जो आदमी वहाँ थे, कोई भी उस चमक को न सह सका और सभी ने अपनी-अपनी आँखें बन्द कर लीं।
दरवाजे के उस पार भी उसी तरह की सुरंग थी। कमलिनी ने देखा कि दुश्मन अपना काम करके सामने की तरफ भागा जा रहा है, मगर इस खंजर की चमक ने उसे भी चौंधिया दिया था। जिसका नतीजा यह हुआ कि कमलिनी बहुत जल्द ही उसके पास जा पहुँची और खंजर उसके बदन से लगा दिया, जिसके साथ ही वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। खंजर कमर में रखकर कमलिनी लौटी और उसने अपने बटुए में से सामान निकालकर एक मोमबत्ती जलाई तथा इतने में हमारे ऐयार लोग भी दरबाजे के दूसरी तरफ जा पहुँचे।
कुँअर इन्द्रजीतसिंह के मोढ़े से खून निकल रहा था। यद्यपि कुमार को उसकी कुछ परवाह न थी और उनके चेहरे पर भी किसी प्रकार का रंज न मालूम होता था तथापि देवीसिंह ने जख्म बाँधने का इरादा किया, मगर कमलिनी ने रोककर अपने बटुए में से किसी प्रकार के तेल की एक शीशी निकाली और अपने नाजुक हाथों से घाव पर तेल लगाया, जिससे तुरन्त ही खून बन्द हो गया। इसके बाद अपने आँचल में से थोड़ा कपड़ा फाड़कर जख्म बाँधा। उसके अहसान ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह को पहले ही अपना कर लिया था, अब उसकी मुहब्बत और हमदर्दी ने उन्हें अच्छी तरह अपने काबू में कर लिया।
इन्द्रजीतसिंह––(कमलिनी से) तुम्हारे अहसानों के बोझ से मैं दबा ही जाता हूँ। (मुस्कुरा कर और धीरे से) देखना चाहिए, सिर उठाने का दिन भी कभी आता है या नहीं।
कमलिनी––(मुस्कुरा कर) बस, रहने दीजिये, बहुत बातें न बनाइये।
आनन्दसिंह––मालूम होता है, वह शैतान भाग गया।
कमलिनी––नहीं-नहीं, मेरे सामने से भाग कर निकल जाना जरा मुश्किल है, आगे चल कर आप उसे जमीन पर बेहोश पड़ा हुआ देखेंगे।
इन्द्रजीतसिंह––इस समय तो तुमने वह काम किया है जिसे करामात कहना चाहिए!
कमलिनी––मैं बेचारी क्या कर सकती हूँ, इस समय तो (खंजर की तरफ इशारा करके) इसने बड़ा काम किया।
इन्द्रजीतसिंह––बेशक यह अनूठी चीज है, इसकी चमक ने तो आँखें बन्द कर दी, कुछ देख भी न सके कि तुमने क्या किया।