आनन्दसिंह चुपचाप इन दोनों की बातें सुन रहे थे, और छिपी निगाहों से लाड़िली के रूप की अलौकिक छटा का भी आनन्द ले रहे थे। लाड़िली भी प्रेम की निगाहों से उन्हें देख रही थी। इस बात को कमलिनी ने भी जान लिया, मगर वह तरह दे गई। जब आनन्दसिंह ने तेजसिंह का हाल सुना तब चौंके और कमलिनी की तरफ देखकर बोले––
आनन्दसिंह––सुना है कि हमारे माता-पिता भी...
कमलिनी––हाँ, उन दोनों को भी कम्बख्त मायारानी ने फँसा लिया है! हाय, मैंने सुना है कि वे दोनों बेचारे बड़े संकट में हैं और सहज ही में उन दोनों का छूटना मुश्किल है, तथापि उद्योग में बिलम्ब न करना चाहिए। अब आप कोई सवाल न कीजिये और यहाँ से जल्द निकल चलिये।
राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता का हाल सुनकर सब के सब घबरा गये और आगे कुछ सवाल करने की हिम्मत न पड़ी। कुमार कमलिनी के साथ चलने के लिए तैयार हो गये और सभी को साथ लिए हए कमलिनी फिर उसी तहखाने में उतर गई, जहाँ से आई थी। कुँअर इन्द्रजीतसिंह किशोरी का और आनन्दसिंह किशोरी का हाल पूछने के लिए बेचैन थे, मगर मौका न समझकर चुप रह गये।
नीचे जाने पर मालूम हुआ कि वह एक सुरंग का रास्ता था, मगर यह सुरंग साधारण न थी। इसकी चौड़ाई केवल इतनी थी कि दो आदमी बराबर मिलकर जा सकते थे। ऊँचाई की यह अवस्था थी कि हर एक मर्द हाथ ऊँचा करके उसकी छत छू सकता था। दोनों तरफ की दीवार स्याह पत्थर की थी, जिस पर तरह-तरह की खूबसूरत, भयानक और कहीं-कहीं आश्चर्यजनक तस्वीरें मुसौवरों की कारीगरी का नमूना दिखा रही थीं, अर्थात् रंगों से बनी थीं। पत्थर गढ़ कर नहीं बनाई गई थीं, परन्तु उन तस्वीरों के रंग की भी यह अवस्था थी कि अभी दो-चार दिन की बनी मालूम होती थीं जिन्हें देख हमारे कुमारों और ऐयारों को बहुत ही ताज्जुब मालूम हो रहा था।
कमलिनी––(इन्द्रजीतसिंह से) आप चाहते होंगे कि इन विचित्र तस्वीरों को अच्छी तरह देखें!
इन्द्रजीतसिंह––बेशक ऐसा ही है, किंतु इस दौडादौड़ में ऐसी उत्तन तस्वीरों के देखने का आनन्द कुछ भी नहीं मिल सकता और यहाँ की एक-एक तस्वीर ध्यान देकर देखने योग्य है, परन्तु क्या किया जाय, जबसे अपने माता-पिता का हाल तुम्हारी जुबानी सुना है, जी बेचैन हो रहा है, यही इच्छा होती है कि जहाँ तक जल्द हो सके, उनके पास पहुँचे और उन्हें कैद से छुड़ावें। तुम स्वयं कह चुकी हो कि वह बड़े संकट में पड़े हैं, परन्तु यह न जाना गया कि उन्हें किस प्रकार का संकट है!
कमलिनी––आपका कहना बहुत ठीक है, इन तस्वीरों को देखने के लिए बहुत समय चाहिए बल्कि इनका हाल और मतलब जानने के लिए कई दिन चाहिए, और यह समय यहाँ अटकने का नहीं है, मगर साथ ही इसके यह भी याद रखिये कि आप दो चार या दस घण्टे के अन्दर ठिकाने पहुँचकर भी अपने माता-पिता को नहीं छुड़ा सकते। मुझे ठीक-ठीक मालूम नहीं कि वह किस कैदखाने में कैद हैं, पहले तो इसी बात का पता
च॰ स॰-2-11