पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१७३

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हो जायँ मगर इस बाग की चहारदीवारी को नहीं लाँघ सकते। जा, बिहारीसिंह और हरनामसिंह को बहुत जल्द बुला ला।

धनपत दौड़ी हुई गई और थोड़ी ही देर में दोनों ऐयारों को साथ लिए हुए लौट आई। वे दोनों ऐयारी के सामान से दुरुस्त और हर एक काम के लिए मुस्तैद थे। यद्यपि बिहारी सिंह के चेहरे का रंग अच्छी तरह साफ नहीं हुआ था, तथापि उसकी कोशिश ने उसके चेहरे की सफाई आधी से ज्यादा कर दी थी, आशा थी कि दो ही एक दिन में वह आईने में अपनी असली सूरत देख लेगा।

कैदखाने का रास्ता पाठकों को मालूम है, क्योंकि तेजसिंह जब बिहारीसिंह की सूरत में यहाँ आए थे तो मायारानी के साथ कैदियों को देखने गये थे।

लाड़िली के कमरे में से दस-बारह तीर और कमान ले के धनपत तथा दोनों ऐयारों को साथ लिए हुए मायारानी सुरंग में घुसी। जब कैदखाने के दरवाजे पर पहुँची तो दरवाजा ज्यों-का-त्यों बन्द पाया। कैदखाने की ताली और लाड़िली के गायब होने का हाल कह के बिहारसिंह और हरनामसिंह को ताकीद कर दी कि जब तक मैं लौट कर न आऊँ तब तक तुम दोनों बड़ी होशियारी से इस दरवाजे पर पहरा दो। इसके बाद धनपत को साथ लिये हुए मायरानी बाग के तीसरे दर्जे में उसी रास्ते से गई जिस राह से तेजसिंह भेजे गये थे।

हम पहले लिख आए हैं कि बाग के तीसरे दर्जे में एक बुर्ज है और उसके चारों तरफ बहुत से मकान, कमरे और कोठरियाँ हैं। बाग में एक छोटा-सा चश्मा बह रहा था जिसमें हाथ भर से ज्यादा पानी कहीं नहीं था। मायारानी उसी चश्मे के किनारे-किनारे थोड़ी दूर तक गई यहाँ तक कि वह एक मौलसिरी के पेड़ के नीचे पहुँची जहाँ संगमरमर का एक छोटा-सा चबूतरा बना हुआ था और उस चबूतरे पर पत्थर की मूरत आदमी के बराबर की बैठी हुई थी। रात पहर भर से कम बाकी थी। चन्द्रमा धीरे-धीरे निकल कर अपनी सफेद रोशनी पूरे आसमान पर फैला रहा था। मायारानी ने उस मुरत की कलाई पकड़ कर उमेठी, साथ ही मूरत ने मुँह खोल दिया। मायारानी ने उसके मुँह में हाथ डालकर कोई पेंच घुमाना शुरू किया। थोड़ी देर में चबूतरे के सामने की तरफ का एक बड़ा-सा पत्थर हल्की आवाज के साथ हट कर अलग होगया और नीचे उतरने के लिए सीढियाँ दिखाई दीं। अपने पीछे-पीछे धनपत को आने का इशारा करके मायारानी उस तहखाने में उतर गई। यद्यपि तहखाने में अँधेरा था मगर मायारानी ने टटोल कर एक आले पर से लालटेन और उसके बालने का सामान उतारा और बत्ती वाल कर चारों तरफ देखने लगी। पूरब तरफ की सुरंग का एक छोटा-सा दरवाजा खुला हआ था, दोनों उसके अन्दर घुसी और सुरंग में चलने लगीं। लगभग सौ कदम जाने के बाद वह सुरंग खत्म हई और ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ दिखाई दीं। दोनों औरतें ऊपर चढ गई और उस बुर्ज के निचले हिस्से में पहुँची जो बहुत से मकानों से घिरा हुआ था। यहाँ भी उसी तरह का चबूतरा और उस पर पत्थर का आदमी बैठा हुआ था। वह भी किसी सुरंग का दरवाजा था जिसे मायारानी ने पहली रीति से खोला। यह सुरंग चौथे दर्जे में जाने के लिए थी।