पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
17
 

थी। उसी लड़ाई में यह अपनी दाहिनी कलाई खो बैठी। यह भी सुनने में आया है कि यह लड़ाई उसी मकान में हुई थी जिसमें आप लोग रहते थे और इसमें कमला भी शामिल थी।

कमलिनी की यह बात सुन कर कुमार को वे ताज्जुब की बातें याद आ गई जो बीमारी की हालत में गयाजी में महल के अन्दर कई दफे रात के समय देखने में आई थीं और जब कि अन्त में कोठरी के अन्दर एक लाश और औरत की कलाई पाई गई थी।

कुमार––हाँ, अब याद आया। वह मामला भी बड़ा ही विचित्र हुआ था अभी तक उसका ठीक-ठीक पता न लगा।

कमलिनी––क्या हुआ था, जरा मैं भी सुनूँ।

कुमार ने वह सब हाल कहा और जो कुछ देखने और सुनने में आया था, वह भी बताया।

कमलिनी––कमला से मुलाकात हो तो कुछ और सुनने में आवे (दोनों आदमियों की तरफ देखकर) पहले माधवी को यहाँ से ले जाओ, लौंडियों के हवाले करो और कह दो, इसे कैदखाने में रक्खें और होश में लाकर इसका इलाज करें। इसके बाद आओ तो तुम्हारी जुबानी वहाँ का सब हाल सुनें। शाबाश, तुम लोगों ने बेशक अपना काम पूरा किया, जिससे मैं बहुत ही खुश हूँ।

'बहुत अच्छा' कहकर दोनों आदमी माधवी को वहाँ से उठाकर नीचे ले गए और इधर कमलिनी और कुमार में बातचीत होने लगी।

कमलिनी––(मुस्कराकर) लीजिए आपकी मुराद पूरी होना चाहती है, पहले-पहले यह खुशखबरी मेरे ही सबब से आपको मिली है, सो सबसे भारी इनाम मुझी को मिलना चाहिए।

कुमार––बेशक ऐसी ही बात है, मेरे पास इस वक्त कोई ऐसी चीज नहीं जो तुम्हारी नजर के लायक हो, खैर इसके बदले में मैं खुद अपने को तुम्हारे हाथ में देता हूँ।

कमलिनी––वाह, क्या खूब!

कुमार––सो क्यों?

कमलिनी––आपको अपने बदन पर अख्तियार ही क्या है! यह तो किशोरी की मिलकियत है!

कुमार लाजवाब हो गए और हँसकर चुप हो रहे। कमलिनी बड़ी ही खूबसूरत थी, इसके साथ-ही-साथ उसकी अच्छी चालचलन, मुरौवत, अहसान और नेकियों ने कुमार को अपना ताबेदार बना लिया। उसकी एक-एक बात पर कुमार प्रसन्न होते थे और दिल में बराबर उसकी तारीफ करते थे।

कुमार––कमलिनी, मैं तुमसे एक बात पूछता हूँ, मगर ईश्वर के लिए सच-सच जवाब देना, बात बनाकर टालने की कोशिश न करना।

कमलिनी––कहिए तो सही, क्या बात है? रंग बेढंग मालूम होता है!