पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१६६

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जो निद्रा न आने के कारण अपने कमरे में टहल रही है। उसे भी तरह-तरह के खयालों ने सता रक्खा है। कभी-कभी उसका सिर हिल जाता है जो उसके दिल की परेशानी को पूरी तरह से छिपा रहने नहीं देता, उसके होंठ भी कभी-कभी अलग होकर दिल का दरवाजा खोल देते हैं जिससे दिल के अन्दर कैद रहने वाले कई भेद शब्द रूप होकर धीरे से बाहर निकल पड़ते हैं।

जब चारों तरफ अच्छी तरह सन्नाटा हो गया तो लाड़िली ने काले कपड़े पहने और ऐयारी का बटुआ कमर में लगाने के बाद कमरे के बाहर निकल कर इधर-उधर टहलना शुरू किया। वह उस कमरे के पास आई जिसके अन्दर मायारानी तरद्दुद और घबराहट से निद्रा न आने के कारण टहल रही थी। लाड़िली छिपकर देखने लगी कि मायारानी क्या कर रही है। थोड़ी देर के बाद मायारानी के मुँह से निकले हुए शब्द लाड़िली ने सुने और वे शब्द ये थे––"वह इस रास्ते को जानता है...वह भेद जिसे लाड़िली नहीं जानती––आह, धनपत को मुहब्बत ने––"

इन शब्दों को सुनकर लाड़िली घबरा गई और बेचैनी से अपने कमरे में लौट आने के लिए तैयार हुई, मगर उसके दिल ने उसे वहाँ से लौटने न दिया। इच्छा हुई कि मायारानी के मुँह से और भी कोई शब्द निकलें तो सुने, परन्तु इसके बाद मायारानी कुछ ज्यादा बेचैन मालूम हुई और अपनी मसहरी पर जाकर लेट रही। आधी घड़ी से ज्यादा न बीती थी कि मायारानी की साँस ने लाड़िली को उसके सो जाने की खबर दी और लाड़िली वहाँ से लौट कर बाग में टहलने लगी। फिर घूमती-फिरती और अपने को पेड़ों की आड़ में बचाती हुई वह बाग के पिछले कोने में पहुँची जहाँ एक छोटा-सा मगर मजबूत बुर्ज बना था। इसके अन्दर जाने के लिए छोटा-सा लोहे का दरवाजा था जिसे उसने धीरे से खोला और अन्दर जाने के बाद फिर बन्द कर लिया। भीतर बिल्कुल अँधेरा था। बटुए में से सामान निकाल कर मोमबत्ती जलाई और उस कोठरी की हालत अच्छी तरह देखने लगी। यह बुर्ज वाली कोठरी वर्षों से ही बन्द थी और इस सबब से इसके अन्दर मकड़ों ने अच्छी तरह अपना घर बना लिया था, मगर लाड़िली ने इस कोठरी की गन्दी हालत पर कुछ ध्यान न दिया। इस कोठरी की जमीन चौखूटे पत्थरों से बनी हुई थी और छत में छोटे-छोटे दो-तीन सूराख थे जिनमें से आसमान में जड़े हुए तारे दिखाई दे रहे थे। पहले तो लाड़िली इस विचार में पड़ी कि बहुत दिनों से बन्द रहने के कारण इस कोठरी की हवा खराब होकर जहरीली हो गई होगी, शायद किसी तरह का नुकसान पहुँचे, मगर छत के सूराखों को देख निश्चिन्त हो गई और मोमबत्ती एक किनारे जमा कर जमीन पर बैठ गई। आधी घड़ी तक सोच विचार में पड़ी रही, इसके बाद हलकी आवाज के साथ कोने की तरफ जमीन का एक चौखूँटा पत्थर किवाड़ के पल्ले की तरह खुल कर अलग हो गया और नीचे से अपनी असली सूरत में कमलिनी निकल कर लाड़िली के सामने खड़ी हो गई। कमलिनी को देखते ही लाड़िली उठ खड़ी हुई और बड़ी मुहब्बत से उसके साथ लिपट कर रोने लगी तथा कमलिनी की आँखें भी आँसु की बूँदें गिराने लगीं, कुछ देर बाद दोनों अलग हुई और जमीन पर बैठकर बात- चीत करने लगी।