पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१६३

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लाड़िली ने बड़े गौर से वह चिट्ठी पढ़ी और इसके बाद टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दी।

तेजसिंह––इसका जवाब?

लाड़िली––केवल इतना ही कह देना कि 'बहुत अच्छा!'

अब तेजसिंह को ठहरने की कोई जरूरत न थी। उन्होंने उत्तर का रास्ता लिया, मगर घूम-घूमकर देखते जाते थे कि पीछे कोई आता तो नहीं। तेजसिंह के जाने के बाद मायारानी ने लाड़िली से पूछा, "वह चिट्ठी किसकी थी और उसमें क्या लिखा था!" लाड़िली ने असल भेद तो छिपा रक्खा, मगर कोई विचित्र बात गढ़कर उस समय मायारानी की दिलजमई कर दी।


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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बाँध रक्खा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न पहुँचा और नागर फिर से होश में आकर उठ बैठी।

नागर––अब मुझे मालूम हुआ कि तेरे पास भी एक अद्भुत वस्तु है।

भूतनाथ––जो अब तुम्हारी होगी।

नागर––नहीं, जिसके छूने से बेहोश हो गई उसे अपने पास क्यों कर रख सकती हूँ! मगर मालूम होता है कि कोई ऐसी चीज भी तेरे पास जरूर है जिसके सबब से इस खंजर का असर तुझ पर नहीं होता। खैर, मैं तेरा यह तीसरा कसूर भी माफ करूँगी यदि तू यह खंजर मुझे दे दे और वह दूसरी चीज भी मेरे हवाले कर दे जिसके सबब से इस खंजर का असर तुझ पर नहीं होता।

भूतनाथ––मगर मुझे क्योंकर विश्वास होगा कि तुमने मेरा कसूर माफ किया?

नागर––और मुझे क्योंकर विश्वास होगा कि तूने वास्तव में वही चीज मुझे दी जिसके सबब से खंजर की करामात से तू बचा हुआ है?

भूतनाथ––बेशक मैं वही चीज तुम्हें दूँगा, और तुम आजमाने के बाद मुझे छोड़ सकती हो।

नागर––मगर ताज्जुब नहीं कि आजमाते ही मैं फिर बेहोश हो जाऊँ क्योंकि तू धोखा देने में मुझसे किसी तरह कम नहीं है!

भूतनाथ––इसका जवाब तुम खुद समझ सकती हो!

नागर––हाँ ठीक है, यदि मैं थोड़ी देर के लिए बेहोश भी हो जाऊँगी तो तू मेरा कुछ कर नहीं सकता क्योंकि पेड़ के साथ बँधा हुआ है और तेरे हाथ-पैर भी खुले नहीं हैं।

भूतनाथ––और मेरे चिल्लाने से भी यहां कोई मददगार न पहुँचेगा।

नागर––हो, इसका प्रमाण भी...