पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१६२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
162
 

धनपत––(मायारानी की तरफ करके) क्या तू जानता नहीं कि यह कौन हैं?

तेजसिंह––मैं तुम तीनों को खूब जानता हूँ और यह भी जानता हूँ कि मायारानी सैंतालीस नम्बर की कोठरी को पवित्र करके बेवा हो गई और इस बात को पाँच वर्ष का जमाना हो गया।

इतना कहकर मुस्कुराते हुए तेजसिंह ने एक भेद की निगाह मायारानी पर डाली और देखा कि मायारानी का चेहरा पीला पड़ गया और शर्म से उसकी आँखें नीचे की तरफ झुकने लगीं। मगर यह अवस्था उसकी बहुत देर तक न रही, तेजसिंह के मुँह से बात निकलने के बाद जैसे ही लाड़िली की ताज्जुब-भरी निगाह मायारानी पर पड़ी वैसे ही मायारानी ने अपने को सम्हाल कर धनपत की तरफ देखा।

अब धनपत अपने को रोक न सकी, उसने घोड़ी बढ़ाकर तेजसिंह पर तलवार का वार किया। तेजसिंह ने फुर्ती से वार खाली देकर अपने को बचा लिया और वही लोहे का गोला धनपति की घोड़ी के सिर में इस जोर से मारा कि वह सम्हल न सकी और सर हिलाकर जमीन पर गिर पड़ी। लोहे का गोला छिटककर दूर जा गिरा और तेजसिंह ने लपक कर उसे उठा लिया।

आशा थी कि घोड़ी के गिरने से धनपति को भी कुछ चोट लगेगी मगर वह घोड़ी पर से उछल कुछ दूर जा रही और बड़ी चालाकी से गिरते-गिरते उसने अपने को बचा लिया। तेजसिंह फिर वही गोला लेकर सामने खड़े हो गए।

तेजसिंह––(गोला दिखाकर) इस गोले की करामात देखी? अगर अबकी फिर वार करने का इरादा करेगो तो यह गोला तेरे घुटने पर बैठेगा और तुझे लँगड़ी होकर मायारानी का साथ देना पड़ेगा। मैं यह नहीं चाहता कि तुम लोगों को इस समय जान से मारूँ मगर हाँ इस जिस काम के लिए आया हूँ, उसे किए बिना लौट जाना भी मुनासिब नहीं समझता।

मायारानी––अच्छा बताओ, तुम हम लोगों के पीछे-पीछे क्यों आए हो और क्या चाहते हो?

तेजसिंह––(लाड़िली की तरफ इशारा करके) केवल इनसे एक बात कहनी है और कुछ नहीं।

लाड़िली––कहो, क्या कहते हो?

तेजसिंह––मैं इस तरह नहीं कहना चाहता कि तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा सुने, इन दोनों से अलग होकर सुन लो फिर मैं चला जाऊँगा। डरो मत, मैं दगाबाज नहीं हूँ, यदि चाहूँ तो ललकार कर तुम तीनों को यमलोक पहुँचा सकता हूँ, मगर नहीं, तुमसे केवल एक बात कहने के लिए आया हूँ जिसके सुनने का अधिकार सिवाय तुम्हारे और किसी को नहीं है।

कुछ सोचकर लाड़िली वहाँ से हट गई और कुछ दूर जाकर तेजसिंह की तरफ देखने लगी मानो वह तेजसिंह की बात सुनने के लिए तैयार हो। तेजसिंह लाड़िली के पास गए और बटुए में से एक चिट्ठी निकाल उसके हाथ में देकर बोले, "इसे जल्द पढ़ लो, देखो, मायारानी को इसका हाल न मालूम हो!"