यह कहकर बिहारीसिंह उसके पास गया और झुक कर सुनने लगा कि वह क्या कहता है?
न मालूम चण्डूल ने बिहारीसिंह के कान में क्या कहा, न मालूम उन शब्दों में कितना असर था, न मालूम वह बात कैसे-कैसे भेदों से भरी हुई थी, जिसने बिहारीसिंह को अपने आपे से बाहर बाहर कर दिया। वह घबरा कर चण्डूल को देखने लगा, उसके चेहरे का रंग जर्द हो गया और बदन में थरथराहट पैदा हो गई।
चण्डूल––क्यों? अगर अच्छी तरह न सुन सका हो तो जोर से पुकार के कहूँ जिसमें और लोग भी सुन लें।
बिहारीसिंह––(हाथ जोड़ कर) बस-बस, क्षमा कीजिए, मैं आशा करता हूँ कि आप अब दोहरा कर उन शब्दों को श्रीमुख से न निकालेंगे, मुझे यह जानने की भी आवश्यकता नहीं कि आप कौन हैं, चाहे जो भी हों।
मायारानी––(बिहारी से) उसने तुम्हारे कान में क्या कहा जिससे तुम घबरा गए?
बिहारीसिंह––(हाथ जोड़ कर) माफ कीजिए, मैं इस विषय में कुछ भी नहीं कह सकता।
मायारानी––(कड़ी आवाज में) क्या मैं वह बात सुनने योग्य नहीं हूँ?
बिहारीसिंह––कह तो चुका कि उन शब्दों को अपने मुँह से नहीं निकाल सकता।
मायारानी––(आँखें लाल करके) क्या तुझे अपनी ऐयारी पर घमंड हो गया? क्या तु अपने को भूल गया या इस बात को भूल गया कि मैं क्या कर सकती हूँ और मुझमें कितनी ताकत है?
बिहारीसिंह––मैं आपको और अपने को खूब जानता हूँ, मगर इस विषय में कुछ नहीं कह सकता। आप व्यर्थ खफा होती हैं, इससे कोई काम न निकलेगा।
मायारानी––मालूम हो गया कि तू भी असली बिहारीसिंह नहीं है। खैर, क्या हर्ज है, समझ लूँगी! (चण्डूल की तरफ देख कर) क्या तू भी दूसरे को वह बात नहीं कह सकता?
चण्डूल––जो कोई मेरे पास आवेगा उसके कान में मैं कुछ कहूँगा। मगर, इसका वायदा नहीं कर सकता कि वही बात कहूँगा या हरएक को नई-नई बात का मजा चखाऊँगा।
मायारानी––क्या यह भी नहीं कह सकता कि तू कौन है और इस बाग में किस राह से आया है?
चण्डूल––मेरा नाम चण्डूल है, आने के विषय में तो केवल इतना ही कह देना काफी है कि मैं सर्वव्यापी हूँ, जहाँ चाहूँ पहुँच सकता हूँ। हाँ, कोई नई बात सुनना चाहती हो तो मेरे पास आओ और सुनो।
हरनामसिंह––(मायारानी से) पहले मुझे उसके पास जाने दीजिए, (चण्डूल के पास जाकर) अच्छा, लो कहो, क्या कहते हो?
चण्डूल ने हरनामसिंह के कान में कोई बात कही। उस समय हरनामसिंह चण्डूल