मैं बिल्कुल इनके कब्जे में हूँ यहाँ तक कि मेरी जान भी इनके हाथ में है।" इसके बाद नानक ने कुछ न कहा। वह चण्डूल के साथ चला गया और पेड़ों की आड़ में घूम-फिर कर देखते-देखते नजरों से गायब हो गया।
अब तेजसिंह फिर अकेले पड़ गए। तरह-तरह के खयालों ने चारों तरफ से आकर उन्हें घेर लिया। नानक की जुबानी जो कुछ उन्होंने सुना था उससे बहुत-सी भेद की बातें मालूम हुई थीं और अभी बहुत-कुछ मालूम होने की आशा थी परन्तु नानक अपना किस्सा पूरा कहने भी न पाया था कि इस चण्डूल ने आकर दूसरा ही रंग मचा दिया जिससे तरवुद और घबराहट सौ गुनी ज्यादा बढ़ गई। बिछावन पर पड़े-पड़े वे तरह-तरह की बातें सोचने लगे।
"नानक की बातों से विश्वास होता है कि उसने अपना हाल जो कुछ कहा सही सही कहा, मगर उसके किस्से में कोई ऐसा पात्र नहीं आया जिसके बारे में चण्डूल होने का अनुमान किया जाय। फिर यह चण्डूल कौन है जिसकी थोड़ी-सी बात से जो उसने झुककर नानक के कान में कही नानक घबरा गया और उसके साथ जाने पर मजबूर हो गया! हाय यह कैसी भयानक खबर सुनने में आई कि अब शीघ्र ही राजा वीरेन्द्रसिंह, रानी चन्द्रकान्ता तथा दोनों कुमार और ऐयार लोग इस बाग में मारे जायेंगे। बेचारे राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता के बारे में भी अब ऐसी बातें!...ओफ न मालूम अब ईश्वर क्या किया चाहता है! मगर हिम्मत न हारनी चाहिए, आदमी की हिम्मत और बुद्धि की जाँच ऐसी ही अवस्था में होती है। ऐयारी का वटुआ और खंजर अभी मेरे पास मौजूद है, कोई न कोई उद्योग करना चाहिए, और वह भी जहाँ तक हो सके शीघ्रता के साथ।"
इन्हीं सब विचारों और गम्भीर चिन्ताओं में तेजसिंह डूबे हुए थे और सोच रहे थे कि अब क्या करना उचित है कि इतने ही में सामने से आती हुई मायारानी दिखाई पड़ी। इस समय वह असली बिहारीसिंह (जिसकी सूरत तेजसिंह ने बदल दी थी और अभी तक खुद जिसकी सूरत में थे) और हरनामसिंह तथा और भी कई ऐयारों और लौंडियों से घिरी हुई थी। इस समय सवेरा अच्छी तरह हो चुका था और सूर्य की लालिमा ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की डालियों पर फैल चुकी थी।
मायारानी तेजसिंह के पास आई और असली बिहारीसिंह ने आगे बढ़ कर तेजसिंह से कहा, "धर्मावतार बिहारीसिंह, मिजाज दुरुस्त है या अभी तक आप पागल ही हैं?"
तेजसिंह––अब मुझे बिहारीसिंह कहकर पुकारने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि आप जान ही गए हैं कि यह पागल असल में राजा वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार है और अब आपको यह जान कर हद दर्जे की खुशी होगी कि यह पागल बिहारीसिंह वास्तव में ऐयारों के गुरुघंटाल तेजसिंह हैं जिनकी बढ़ी हुई हिम्मतों का मुकाबला करने वाला इस दुनिया में कोई नहीं है और जो इस कैद की अवस्था में भी अपनी हिम्मत और बहादुरी का दावा करके कुछ कर गुजरने की नीयत रखता है।
बिहारीसिंह––ठीक है, मगर अब आप ऐयारों के गुरुघंटाल की पदवी नहीं रख