बैठा करती इसलिए मेरा और उस लड़की का रोज साथ रहता तथा धीरे-धीरे हम दोनों में मुहब्बत दिन-दिन बढ़ने लगी। उस लड़की का नाम, जो मुझसे उम्र में दो वर्ष कम थी, रामभोली था और मेरा नाम नानक, मगर घर वाले मुझे ननकू कहके पुकारा करते। वह लड़की बहुत खूबसूरत थी मगर जन्म की गूँगी-बहरी थी तथापि हम दोनों की मुहब्बत का यह हाल था कि उसे देखे बिना मुझे और मुझे देखे बिना उसे चैन न पड़ता। गुरु के पास बैठ कर पढ़ना मुझे बहुत बुरा मालूम होता और उस लड़की से मिलने के लिए तरह-तरह के बहाने करने पड़ते।
धीरे-धीरे मेरी उम्र दस वर्ष की हुई और मैं अपने-पराये को अच्छी तरह समझने लगा। मेरे पिता का नाम रघुबरसिंह था। बहुत दिनों पर उसका घर आया करना मुझे बहुत बुरा मालूम हुआ और मैं अपनी माँ से उसका हाल खोद-खोद के पूछने लगा। मालूम हुआ कि वह अपना हाल बहुत छिपाता है यहाँ तक कि मेरी माँ भी उसका पूरा-पूरा हाल नहीं जानती तथापि यह मालूम हो गया कि मेरा बाप ऐयार है और किसी राजा के यहाँ नौकर है। यह भी सुना कि वहाँ मेरी एक सौतेली माँ भी रहती है जिससे एक लड़का और एक लड़की भी है।
मेरा बाप जब आता तो महीने-दो-महीने या कभी-कभी केवल आठ ही दस दिन रह कर चला जाता और जितने दिन रहता, मुझे ऐयारी सिखाने में विशेष ध्यान देता। मुझे भी पढ़ने-लिखने से ज्यादा खुशी ऐयारी सीखने में होती, क्योंकि रामभोली से मिलने तथा अपना मकलब निकालने के लिए ऐयारी बड़ा काम देती थी। धीरे-धीरे लड़कपन का जमाना बहुत-कुछ निकल गया और वे दिन आ गये कि जब लड़पन नौजवानी के साथ ऊधम मचाने लगा और मैं अपने को नौजवान और ऐयार समझने लगा।
एक रात मैं अपने घर में नीचे के खण्ड में कमरे के अन्दर चारपाई पर लेटा हुआ रामभोली के विषय में तरह-तरह की बातें सोच रहा था। इश्क की चपेट में नींद हराम हो गई थी, दीवार के साथ लटकती हुई तस्वीरों की तरफ टकटकी बाँध कर देख रहा था, यकायक ऊपर की छत पर धमधमाहट की आवाज आने लगी। मैं यह सोच कर निश्चिन्त हो रहा कि शायद कोई लौंडी जरूरी काम के लिए उठी होगी उसी के पैरों की धमधमाहट मालूम होती है मगर थोड़ी देर बाद ऐसा मालूम हुआ कि सीढ़ियों की राह कोई आदमी नीचे उतरा चला आता है। पैर की आवाज भारी थी जिससे मालूम हुआ कि यह कोई मर्द है। मुझे ताज्जुब मालूम हुआ कि इस समय मर्द इस मकान में कहाँ से आया क्योंकि मेरा बाप घर में न था, उसे नौकरी पर गए हुए दो महीने से ज्यादा हो चुके थे।
मैं आहट लेने और कमरे से बाहर निकल कर देखने की नीयत से उठ बैठा। चारपाई की चरमराहट और मेरे मेरे उठने की आहट पाकर यह आदमी फुर्ती से उतर कर चौक में पहुँचा और जब तक मैं कमरे के बाहर हो कर उसे देखू, तब तक वह सदर दर- वाजा खोल कर मकान के बाहर निकल गया। मैं हाथ में खंजर लिये हुए मकान के बाहर निकला और उस आदमी को जाते हुए देखा। उस समय मेरे नौकर और सिपाही, जो दरवाजे पर रहा करते थे, विल्कुल गाफिल सो रहे थे मगर मैं उन्हें सचेत करके उस आदमी के पीछे रवाना हुआ।