पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१४२

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और दीजिये।

तेजसिंह––अभी एक आँच की कसर रह गई, अच्छा पूछिये।

सिपाहीं––यदि कोई ऐसा आदमी आपके सामने आवे जो आपसे मुहब्बत रखे, आपके काम में दिलोजान से मदद दे, आपकी भलाई के लिए जान तक देने को तैयार रहे, मगर उसके बाप-दादा या चाचा-भाई आदि में से कोई आदमी आपके साथ पूरी पूरी दुश्मनी कर चुका हो तो आप उसके साथ कैसा वर्ताव करेंगे?

तेजसिंह––जो मेरे साथ नेकी करेगा उसके साथ मैं दोस्ती का बर्ताव करूँगा, चाहे उसके बाप-दादे मेरे साथ पूरी दुश्मनी क्यों न कर चुके हो।

सिपाही––ठीक है ऐसा ही करना चाहिये, अच्छा तो फिर सुनिए––मेरा नाम नानक है और मकान काशीजी।

तेजसिंह––नानक!

सिपाही––जी हाँ। मेरा किस्सा बहुत ही अनूठा और आश्चर्यजनक है।

तेजसिंह––मैंने यह नाम कहीं सुना है मगर याद नहीं पड़ता कि कब और क्यों सुना। इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुम्हारा हाल आश्चर्य और अद्भुत घटनाओं से भरा होगा। मेरी तबीयत घबड़ा रही है, जितनी जल्दी हो सके अपना ठीक-ठीक हाल कहो।

नानक––दिल लगाकर सुनिये मैं कहता हूँ, यद्यपि उस काम में देर हो जायेगी जिसके लिए मैं आया हूँ तथापि मेरा किस्सा सुनकर आप अपना काम बहुत आसानी से निकाल सकेंगे और यहाँ की बहुत-सी बातें भी आपकी मालूम हो जायेंगी।

नानक का किस्सा

लड़कपन में बड़े चैन से गुजरती थी। मेरे घर में किसी चीज की कमी न थी। खाने के लिए अच्छी-से-अच्छी चीजें, पहनने के लिए एक-से-एक बढ़ के कपड़े और वे सब चीजें मुझे मिला करतीं जिनकी मुझे जरूरत होती या जिनके लिए मैं जिद किया करता। माँ से मुझे बहुत ज्यादा मुहब्बत थी और बाप से कम क्योंकि मेरा बाप किसी दुसरे शहर में किसी राजा के यहाँ नौकर था, चौथे-पाँचवें महीने और कभी-कभी साल भर पीछे घर में आता और दस-पाँच दिन रहकर चला जाता था। उसका पूरा हाल आगे चलकर आपको मालूम होगा। मेरा बाप मेरी माँ को बहुत चाहता था और जब घर आता तो बहुत-सा रुपया और अच्छी-अच्छी चीजें उसे दे जाया करता था और इसलिए हम लोग अमीरी ठाठ के साथ अपने दिन बिताते थे।

मैं जिस बुड्ढी दाई की गोद में खेला करता था वह बहुत ही नेक थी और उसकी बहिन एक जमींदार के यहाँ जिसका घर मेरे पड़ोस में था रहती और उसकी लड़की को खिलाया करती थी। मेरी दाई कभी मुझे लेकर उस जमींदार के घर जा बैठा करती और कभी उसकी बहिन उस लड़की को लेकर जिसके खिलाने पर वह नौकर थी मेरे घर आ