सन्देह नहीं कि तुम सिवाय भलाई के मेरे साथ बुराई कभी न करोगी। मैं जरूर यहाँ रहूँगा और जब तक अपने दिल का शक अच्छी तरह न मिटा लूँगा, न जाऊँगा।
कमलिनी––अहोभाग्य! (हँसकर) मगर ताज्जुब नहीं कि इसी बीच में आपके ऐयार लोग यहाँ पहुँचकर मुझे गिरफ्तार कर लें।
कुमार––क्या मजाल है!
3
कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहाँ मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रक्खा। इस मकान में कई लौंडियाँ भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर के लिए न मालूम कहाँ चली जाया करती थीं।
एक दिन शाम के वक्त उस मकान की छत पर कमलिनी और कुमार बैठे बात कर रहे थे, इसी बीच में कुमार ने पूछा––
कुमार––कमलिनी, अगर किसी तरह का हर्ज न हो तो इस मकान के बारे में कुछ कहो। इन पुतलियों की तरफ, जो इस मकान के चारों कोनों में तथा इस छत के बीचोंबीच में हैं, जब मेरी निगाह पड़ती है तो ताज्जुब से अजब हालत हो जाती है।
कमलिनी––बेशक इन्हें देख आप ताज्जुब करते होंगे। यह मकान एक तरह का छोटा-सा तिलिस्म है जो इस समय बिल्कुल मेरे अधीन है। मगर यहाँ का हाल बिना मेरे कहे थोड़े ही दिनों में आपको पूरा-पूरा मालूम हो जायगा।
कुमार––उन दोनों औरतों के साथ, जो माधवी की लौंडियाँ थीं, तुमने क्या सलूक किया?
कमलिनी––अभी तो वे दोनों कैद हैं।
कुमार––माधवी का भी कुछ हाल मालूम हुआ है?
कमलिनी––उसे आपके लश्कर और रोहतासगढ़ के चारों तरफ घूमते कई दफे मेरे आदमियों ने देखा है। जहाँ तक मैं समझती हूँ वह इस धुन में लगी है कि किसी तरह आप दोनों भाई और किशोरी उसके हाथ लगें और वह अपना बदला ले।
कुमार––अभी तक रोहतासगढ़ का कुछ हाल नहीं मालूम हुआ, न लश्कर का कोई समाचार मिला।
कमलिनी––मुझे भी इस बात का ताज्जुब है कि मेरे आदमी किस काम में फँसे हुए हैं। क्योंकि अभी तक एक ने भी लौटकर खबर न दी। (चौंककर और मैदान की तरफ देख के) मालूम होता है, इस समय कोई नया समाचार मिलेगा। मैदान की तरफ देखिए, दो आदमी एक बोझ लिये इसी तरफ आते दिखाई दे रहे हैं। ताज्जुब नहीं कि ये मेरे ही आदमियों में से हों।