रहा कोई दूसरा उद्योग करने के लिए मेरा बचकर यहाँ से निकल जाना भी मुश्किल हो गया, क्योंकि मैं किसी तरह उसके सवालों का जवाब नहीं दे सकता और न उस बाग के गुप्त भेदों की मुझे खबर ही है।
असली बिहारीसिंह अपनी बात कहकर चुप हो गया और इस फिक्र में हुआ कि मेरी बात का कोई जवाब दे ले तो मैं कुछ कहूँ, मगर मायारानी की आज्ञा बिना कोई भी उसकी बातों का जवाब न दे सकता था। चालाक और धूर्त मायारानी न मालूम क्या सोच रही थी कि आधी घड़ी तक उसने सिर न उठाया। इसके बाद उसने एक लौंडी की तरफ देखकर कहा, "हरनामसिंह को यहाँ बुलाओ!"
हरनामसिंह पर्दे के अन्दर आया और मायारानी के सामने खड़ा हो गया।
मायारानी––यह ऐयार जो अभी आया है और बड़ी तेजी से बोलकर चुप बैठा है बड़ा ही शैतान और धूर्त मालूम होता है। मैं सबसे बहुत-कुछ पूजना चाहती हूँ परतु इस समय मेरे सिर में दर्द है, बात करना या सुनना मुश्किल है। तुम इस ऐयार को ले जाओ, चार नम्बर के कमरे में इसके रहने का बन्दोबस्त कर दो, जब मेरी तबीयत ठीक होगी तो देखा जायेगा।
हरनामसिंह––बहुत मुनासिब है, और मैं सोचता हूँ कि बिहारीसिंह को भी...
मायारानी––हाँ, बिहारीसिंह भी दो-चार दिन इसी बाग में रहें तो ठीक है। क्योंकि यह इस समय बहुत ही कमजोर और सुस्त हो रहे हैं। यहाँ की आबहवा से दोतीन दिन में यह ठीक हो जायेंगे। इनके लिए बाग के तीसरे हिस्से का दो नम्बर वाला कमरा ठीक है जिसमें तुम रहा करते हो।
हरनामसिंह––मैं सोचता हूँ कि पहले बिहारीसिंह का बन्दोबस्त कर लूँ, तब शैतान ऐयार की फिक्र करूँ।
मायारानी––हाँ, ऐसा ही होना चाहिए।
हरनामसिंह––(नकली बिहारीसिंह अर्थात् तेजसिंह की तरफ देखकर) चलिए उठिये।
यद्यपि तेजसिंह को विश्वास हो गया कि अव बचाव की सूरत मुश्किल है तथापि उन्होंने हिम्मत न हारी और अपनी कार्रवाई सोचने से आज न आए। इस समय चुपचाप हरनामसिंह के साथ चले जाना ही उन्होंने मुनासिब जाना।
तेजसिंह को साथ लेकर हरनामसिंह उस कोठरी में पहुँचा जिसमें सुरंग का रास्ता था। इस कोठरी में दीवार के साथ लगी हुई छोटी-छोटी कई आलमारियाँ थीं। हरनाम सिंह ने उनमें से एक आलमारी खोली, मालूम हुआ कि यह दूसरी कोठरी में जाने का दरवाजा है। हरनामसिंह और तेजसिंह दूसरी कोठरी में गये। यह कोठरी बिल्कुल अँधेरी थी अस्तु तेजसिंह को मालूम न हुआ कि यह कितनी लम्बी और चौड़ी है। दसबारह कदम आगे बढ़कर हरनामसिंह ने तेजसिंह की कलाई पकड़ी और कहा, "बैठ जाइये।" यहाँ की जमीन कुछ हिलती हुई मालूम हुई और इसके बाद इस तरह की आवाज आई, जिससे तेजसिंह ने समझा कि हरनामसिंह ने किसी कल या पुर्जे को छेड़ा