पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१२७

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कर कुछ गाने लगे। दिन केवल घण्टे भर बाकी रह गया था जब वह दूसरा आदमी भी शिवालय के बाहर निकला। तेजसिंह को जो उसके साथी की सूरत में थे, पेड़ के नीचे मौजूद पाकर वह गुस्से में आ गया और उनके पास आकर खूब कड़ी आवाज में बोला, "वाहजी बिहारीसिंह, अभी तक आप यहाँ बैठे गीत गा रहे हैं।"

तेजसिंह को इतना मालूम हो गया कि हम जिसकी सूरत में हैं उसका नाम बिहारीसिंह है। अब जब तक ये अपनी असली सूरत में न आवें, हम भी इन्हें बिहारीसिंह के ही नाम से लिखेंगे, हाँ कहीं-कहीं तेजसिंह लिख जायें तो कोई हर्ज भी नहीं।

बिहारीसिंह ने अपने साथी की बात सुन कर गाना बन्द किया और उसकी तरफ देख के कहा––

बिहारीसिंह––(दो तीन दफे खाँस कर) बोलो मत, इस समय मुझे खाँसी हो गई है, आवाज भारी हो रही है, जितना कोशिश करता हूँ उतना ही गाना बिगड़ जाता है। खैर तुम भी आ जाओ और जरा सुर में सुर मिला कर साथ गाओ तो!

हरनामसिंह––क्या बात है! मालूम होता है, तुम कुछ पागल हो गये हो, मालिक का काम गया जहन्नुम में और हम लोग बैठे गाया करें!

बिहारीसिंह––वाह, जरा-सी बूटी ने क्या मजा दिखाया। अहा हा, जीते रहो पट्टे! ईश्वर तुम्हारा भला करे, खूब सिद्धी पिलाई।

हरनामसिंह––बिहारीसिंह, यह तुम्हें क्या हो गया? तुम तो ऐसे न थे!

बिहारीसिंह––जब न थे तब बुरे थे, अब हैं तो अच्छे हैं। तुम्हारी वात ही क्या है, सत्रह हाथी जलपान कर के बैठा हूँ। कम्बख्त ने जरा नमक भी नहीं दिया, फीका ही उड़ाना पड़ा। ही-ही-ही-ही, आओ एक गदहा तुम भी खा लो, नहीं-नहीं सूअर, अच्छा कुत्ता ही सही। ओ हो हो हो, क्या दूर की सूझी! बच्चाजी ऐयारी करने बैठे हैं, हल जोतना आता ही नहीं, जिन्न पकड़ने लगे। हा-हा-हा-हा-हा, वाह रे वूटी, अभी तक जीभ चटचटाती है––लो देख लो (जीभ चटचटा कर दिखाता है)।

हरनामसिंह––अफसोस!

बिहारीसिंह––अब अफसोस करने से क्या फायदा? जो होना था वह तो हो गया। जाके पिण्डदान करो। हाँ, यह तो बताओ, पितर-मिलौनी कब करोगे? मैं जाता हूँ तुम्हारी तरफ से ब्राह्मणों को नेवता दे आता हूँ।

हरनामसिंह––(गर्दन हिला कर) इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुम पूरे पागल हो गए हो। तुम्हें जरूर किसी ने कुछ खिला-पिला दिया है।

बिहारीसिंह––न इसमें सन्देह न उसमें सन्देह, पागल की बातचीत तो बिल्कुल जाने दो क्योंकि तुम लोगों में केवल मैं ही हूँ सो हूँ, बाकी सब पागल। खिलानेवाले की ऐसी-तैसी, पिलानेवाले का बोलबाला। एक लोटा भाँग, दो सौ पैंतीस साढ़े तेरह आना, लोटा निशान। ऐयारी के नुस्खे एक से एक बढ़ के याद हैं, जहाज की पाल भी खूब ही उड़ती है। वाह, कैसी अँधेरी रात है। बाप रे बाप, सूरज भी अस्त होना ही चाहता है। तुम भी नहीं हम भी नहीं, अच्छा तुम भी सही, बड़े अकिलमन्द हो, अकिल, अकिल, अकिल, मन्द, मन्द, मन्द। (कुछ देर तक चुप रह कर) अरे बाप रे बाप, मैया री मैया,