रोहतासग़ढ़ ले गए थे, इसलिए तेजसिंह ने सोचा कि ये दोनों आदमी भी जरूर उन्हीं लोगों में से हैं जिनकी बदौलत हम लोग दुःख भोग रहे हैं अस्तु, इन लोगों में से किसी को फँसा कर अपना काम निकालना चाहिए।
तेजसिंह के देखते-ही-देखते वे दोनों आदमी वहाँ पहुँच कर उस शिवालय के अन्दर घुस गये और लगभग दो घड़ी के बीत जाने पर भी बाहर न निकले। तेजसिंह ने छिप कर राह देखना उचित न जाना। वह झाड़ी में से निकल कर शिवालय में आये मगर झाँक कर देखा तो शिवालय के अन्दर किसी आदमी की आहट न मिली। ताज्जुब करते हुए शिवलिंग के पास तक चले गये मगर किसी आदमी की सूरत दिखाई न पड़ी। तेजसिंह तिलिस्मी कारखानों और अद्भुत मकानों तथा तहखानों की हालत से बहुत-कुछ वाकिफ हो चुके थे इसलिए समझ गए कि इस शिवालय के अन्दर कोई गुप्त राह या तहखाना अवश्य है और इसी सबब से ये दोनों आदमी गायब हो गये हैं।
शिवालय के सामने की तरफ बेल का एक पेड़ था। उसी के नीचे तेजसिंह यह निश्चय करके बैठ गए कि जब तक वे लोग अथवा उनमें से कोई एक बाहर न आयेगा तब तक यहाँ से न टलेंगे। आखिर घण्टे भर के बाद उन्हीं में से एक आदमी शिवालय के अन्दर से बाहर आता हुआ दिखाई पड़ा। उसे देखते ही तेजसिंह उठ खड़े हुए, निगाह मिलते ही झुक कर सलाम किया और तब कहा, "ईश्वर आपका भला करे, मेरे भाई की जान बचाइए!"
आदमी––तू कौन है और तेरा भाई कहाँ है?
तेजसिंह––मैं जमींदार हूँ, (हाथ का इशारा करके) उस झाड़ी के दूसरी ओर मेरा भाई है। बेचारे को एक बुढ़िया व्यर्थ मार रही है। आप पूजारीजी हैं, धर्मात्मा हैं, किसी तरह मेरे भाई को बचाइए। इसीलिए मैं यहाँ आया हूँ। (गिड़गिड़ा कर) बस, अब देर न कीजिए, ईश्वर आपका भला करे!
तेजसिंह की बातें सुन कर उस आदमी को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और बेशक ताज्जुब की बात भी थी, क्योंकि तेजसिंह बदन के मजबूत और निरोग मालूम होते थे, देखने वाला कह सकता था कि बेशक इसका भाई भी वैसा ही होगा, फिर ऐसे दो आदमियों के मुकाबले में एक बूढ़ी औरत का जबर्दस्त पड़ना ताज्जुव नहीं तो क्या है!
आखिर बहत-कुछ सोच-विचार कर उस आदमी ने तेजसिंह से कहा, "खैर चलो देखें वह बुढ़िया कैसी पहलवान है।"
उस आदमी को साथ लिए हुए तेजसिंह शिवालय से कुछ दूर चले गये और एक गुंजान झाड़ी के पास पहुँच कर इधर-उधर घूमने लगे।
आदमी––तुम्हारा भाई कहाँ है?
तेजसिंह––उसी को तो ढूँढ़ रहा हूँ।
आदमी––क्या तुम्हें याद नहीं कि उसे किस जगह छोड़ गए थे?
तेजसिंह––राम-राम, कैसे बेवकूफ से पाला पड़ा है! अरे कम्बख्त, जब जगह याद नहीं तो यहाँ तक कैसे आए!
आदमी––पाजी कहीं का! हम तो तेरी मदद को आए और तू हमें ही कम्बख्त