दरबान के साथ ही साथ कमलिनी बाग के अन्दर गई और उस आलीशान मकान के सहन में पहुँची जो इस बाग के बीचोंबीच बना हुआ था। इस मकान के कमरों, दालानों, कोठरियों, तहखानों और पेचीले रास्तों का यदि यहाँ पूरा-पूरा बयान किया जाय तो पाठकों का बहुत समय नष्ट होगा, क्योंकि इस हिकमती मकान के हरएक दर्जे और हरएक हिस्से बड़ी कारीगरी और मतलब के साथ बनाये गये हैं। यदि हमारे पाठकों को तीन-चार बार इस मकान के अन्दर जाने और रात भर रहने का मौका मिल जायगा तो उन्हें यहाँ का बहुत भेद मालूम हो जायगा।
कमलिनी ने नागर को सहन में टहलते हए पाया। वह सिर नीचा किये किसी सोच में डूबी हुई टहल रही थी, कमलिनी के पैर की आहट पाकर चौंकी और बोली––
नागर––क्या मेरी सखी मनोरमा का सन्देशा लेकर तुम ही आई हो?
कमलिनी––हाँ।
नागर––तुम कौन और कहाँ की रहने वाली हो? मैंने तुम्हें सिवाय आज के पहले कभी नहीं देखा।
कमलिनी––हाँ, ठीक है, परन्तु मैं अपना परिचय किसी तरह नहीं दे सकती।
नागर––यदि ऐसा है तो मैं तुम्हारी बातों पर क्योंकर विश्वास करूँगी?
कमलिनी––यदि मेरी बातों पर विश्वास न करोगी तो मेरा कुछ भी न बिगड़ेगा अगर कुछ बिगड़ेगा तो तुम्हारा या तुम्हारी सखी मनोरमा का। जब मनोरमा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा तो मुझे भी इस बात का तरद्दुद हुआ और मैंने उनसे कहा कि तुम मुझे भेजती तो हो, मगर जाने से कोई काम न निकलेगा क्योंकि मैं किसी तरह अपना परिचय किसी को नहीं दे सकती और बिना मुझे अच्छी तरह जाँचे नागर मेरी बात पर विश्वास न करेंगी। इसके जवाब में मनोरमा ने कहा कि मैं लाचार हूँ, सिवाय तेरे यहाँ पर मेरा हित कोई नहीं जिसे नागर के पास भेजूँ। यदि तू न जायेगी तो मेरी जान किसी तरह नहीं बच सकती। खैर, तुम्हें मैं एक शब्द बताती हूँ, मगर खबरदार, वह शब्द सिवाय नागर के किसी दूसरे के सामने जबान से न निकालना। जिस समय नागर तेरी जबान से वह शब्द सुनेगी, उसी समय उसका शक जाता रहेगा और जो कुछ तू उसे कहेगी वह अवश्य करेगी। आखिर मनोरमा ने वह शब्द मुझे बताया और उसी के भरोसे मैं यहाँ तक आई हूँ।
नागर––(कुछ सोचकर) वह शब्द क्या है?
कमलिनी––(चारों तरफ देखकर और किसी को न पाकर) 'विकट'!
नागर––(कुछ देर तक सोचने के बाद) खैर, मुझे तुम पर भरोसा करना पड़ा। अब कहो, मनोरमा किस अवस्था में है और मुझे क्या करना चाहिए?
कमलिनी––मनोरमा भूतनाथ से मिलने के लिए गई थी, मगर उससे मुलाकात होने पर न मालूम कौन-सा ऐसा सबब आ पड़ा कि उसने भूतनाथ का सिर काट लिया।
नागर––(चौंककर) हैं! भूतनाथ को मार ही डाला!
कमलिनी––हाँ, उस समय मैं मनोरमा के साथ, मगर कुछ दूर पर, खड़ी यह