दोनों तरफ वाली जड़ाऊ कुर्सियों पर नौजवान और खूबसूरत औरतें बड़े ठाठ से बैठी थीं[१]। मैं उस दरबार को कभी न भूलूँगी।
कमलिनी––ठीक है, तो अब तुझे मायारानी को देखने की कोई आवश्यकता नहीं, खैर, मुख्तसिर में कह, फिर क्या हुआ?
कमला––पहले यह बता दीजिये कि मायारानी के बगल में छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर कौन औरत थी, क्योंकि वह भी बड़ी ही खूबसूरत थी?
कमलिनी––वह मेरी छोटी बहिन थी। सब से बड़ी मायारानी, उससे छोटी मैं और मुझसे छोटी वही औरत है, उसका नाम लाड़िली है।
कमल––आपकी और भी कोई बहिन है?
कमलिनी––नही, हम तीनों के सिवाय और कोई बहिन या भाई नहीं है। अब तू अपना हाल कह, फिर क्या हुआ?
कमला––मायारानी के सिंहासन के पीछे मनोरमा खड़ी थी। उन सभी की बातचीत से मुझे मालूम हुआ कि उसका नाम मनोरमा है। वह बड़ी दुष्ट थी!
कमलिनी––थी नहीं, बल्कि है। हाँ, तब क्या हुआ?
कमला––ऐसे दरबार को देख मैं घबरा गई। जिधर निगाह पड़ती थी उधर ही एक से एक बढ़ के जड़ाऊ चीजें नजर आती थीं। मैं हैरान थी कि इतनी दौलत इन लोगों के पास कहाँ से आई और ये लोग कौन हैं। मैं ताज्जब में आकर चारों तरफ देखने लगी। यकायक मेरी निगाह कुँअर आनन्दसिंह और तारासिंह पर पड़ी। कुँअर आनन्दसिंह हथकड़ी और बेड़ी से लाचार मेरे पीछे की तरफ बैठे थे। उनके पास उन्हीं की तरह हथकड़ी-वेड़ी से वेबस तारासिंह भी बैठे थे। फर्क इतना था कि कुँअर आनन्दसिंह जख्मी न थे, मगर तारासिंह बहुत ही जख्मी और खून से तरबतर हो रहे थे। उनकी पोशाक खून से रँगी हुई मालूम पड़ती थी। यद्यपि उनके जख्मों पर पट्टी बँधी हुई थी मगर सुरत देखने से साफ मालूम पड़ता था कि उनके बदन से खून बहुत निकल गया है और इसी से वे सुस्त और कमजोर हो रहे हैं। कुमार की अवस्था देखकर मुझ क्रोध चढ़ आया, मगर क्या कर सकती थी, क्योंकि हथकडी और बेडी ने मुझे भी लाचार कर रक्खा था। हाथ में नंगी तलवारें लिए कई औरतें कुँअर आनन्दसिंह, तारासिंह और मुझको घेरे हुए थीं। यह जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा था कि जब हम लोग बेहोश करके यहाँ लाए गये तो तारासिंह को जख्मी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। मायारानी ने मनोरमा की तरफ देखा और कुछ इशारा किया, मनोरमा तुरत मेरे पास आई। उसके एक हाथ में कोई चिट्ठी थी और दूसरे हाथ में कलम और दावात। मनोरमा ने वह चिट्ठी मेरे आगे रख दी और उस पर हस्ताक्षर कर देने के लिए मुझे कहा, मैंने चिट्ठी पढ़ी और क्रोध के साथ हस्ताक्षर करने से इनकार किया।
कमलिनी––उस चिट्ठी में क्या लिखा हुआ था? कमला-वह चिट्ठी मेरी तरफ से राजा वीरेन्द्रसिंह के नाम लिखी गई थी
- ↑ इसी दरबार में रामभोली का आशिक नानक गया था।