उस खँडहर वाले तहखाने में गये तो वहाँ किसी को न पाया। सीढ़ी के नीचे एक छोटी कोठरी थी, मैं उसमें घुस गई। देखा कि पत्थर की एक सिल्ली दीवार से अलग होकर जमीन पर पड़ी हुई और उस जगह एक आदमी के जाने लायक रास्ता है। उस दरवाजे के दूसरी तरफ एक और कोठरी नजर आई जिसमें चिराग जल रहा था। मैंने आनन्द सिंह और तारासिंह को पुकारा, जब वे आ गए तो तीनों आदमी उस कोठरी के अन्दर घसे। जब दो-तीन कदम आगे गये तो यकायक पीछे से खटके की आवाज आई, घूमकर देखा तो वह रास्ता बन्द पाया जिधर से आये थे। ताज्जुब में आकर हम लोग सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। यकायक कई आदमी एक तरफ से निकलकर आये और उन लोगों ने फुर्ती के साथ एक-एक चादर हम लोगों के ऊपर डाल दी। मुझे उस चादर की तेज महक कभी न भूलेगी। सिर पर पड़ते ही अजब हालत हो गई, एक प्रकार की तेज महक नाक के अन्दर घुसी और उसने तन-बदन की सुध भुला दी। न मालूम उसी दिन या दूसरे या कई दिन के बाद जब मैं होश में आई तो अपने को रात के समय एक जनाने दरबार में पाया।
कमलिनी––वह दरबार कैसा था?
कमला––वह दरबार एक बारहदरी में था। जड़ाऊ सिंहासन पर एक नौजवान औरत दक्षिणी ढंग की पोशाक पहने बैठी थी। मैं कह सकती हूँ कि सिवाय किशोरी के उसके मुकाबले की खूबसूरत औरत आज तक किसी ने न देखी होगी।
कमलिनी––बस-बस, मैं समझ गई, वही मायारानी थी। हाँ, और क्या देखा?
कमला––उसके दाहिनी तरफ सोने की एक चौकी पर मृगछाला बिछा हुआ था मगर उस पर कोई बैठा न था।
कमलिनी––वह तिलिस्म के दरोगा की जगह थी जो वृद्ध साधु के वेष में रहता है, मगर आज कल उसे राजा वीरेन्द्रसिंह ने कैद कर लिया है।
कमला––(ताज्जुब से) राजा वीरेन्द्रसिंह ने कब और किस दारोगा को कैद किया है?
कमलिनी––उस तिलिस्मी खँडहर में जब तुम लोग गये तो किसी साधु को बेहोश पाया था या नहीं?
कमला––(कुछ सोचकर) हाँ-हाँ, एक कोठरी के अन्दर जिसमें एक मूरत थी। क्या वही तिलिस्मी दारोगा है?
कमलिनी––हाँ, वही दारोगा है, वही बहुत से आदमियों को साथ लेकर तहखाने में से कुमार को उठा लाने के लिए उस खँडहर में गया था, मगर तारासिंह की चालाकी से अपने साथियों के सहित बेहोश हो गया। उस समय वेष बदले मेरा भी एक आदमी वहाँ मौजूद था, मगर दूर ही से सब-कुछ देख रहा था। हाँ तो उस दरबार में और क्या देखा?
कमला––उस मृगछाला बिछी हुई चौकी के पास अर्धगोलाकार बीस जड़ाऊ कुर्सियाँ और थीं और उसी तरह सिंहासन के बाईं तरफ छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर एक खूबसूरत औरत बैठी हुई थी जिसके बाद फिर बीस या इक्कीस जड़ाऊ कुर्सियाँ थीं, और