पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/९०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
82
 


पाया, इसलिए समझ गयी कि यह कोई ऐयार या ऐयारा है, सिवाय इसके किशोरी की सखियों की जुबानी उसने यह मालूम कर ही लिया था कि कोई उसी की सूरत बना किशोरी को ले गया है। अब उसे विश्वास हो गया कि किशोरी को इसी ने धोखा दिया है।

थोड़ी देर बाद कमला ने अपने बटुए में से पानी-भरी छोटी-सी बोतल निकाली और नकली कमला का मुँह धोकर साफ किया। इसके बाद चकमक से आग निकाल बत्ती जलाकर पहचानना चाहा कि वह कौन है मगर बिना ऐसा किये वह केवल चन्द्रमा की ही मदद से पहचान ली गयी कि माधवी की सखी ललिता है। क्योंकि कमला उसे अच्छी तरह जानती थी, और वर्षों साथ रहने के अलावा मिला-जुला भी करती थी।

कमला को विश्वास तो हो ही गया कि किशोरी को धोखा देकर ले जाने वाली यही ललिता है मगर इस बात का ताज्जुब बना ही रहा कि वह सामने से लौटकर आती हुई क्यों दिखाई पड़ी! कमला यह भी जानती थी कि चाहे जान चली मगर ललिता असल भेद कभी न बतावेगी, इसलिए उसकी जुबानी पता लगाने का उद्योग करना उसने व्यर्थ समझा और अपने साथ ललिता को घोड़े पर लादकर घर की तरफ पलट पड़ी।

रात बिलकुल बीत चुकी थी, बल्कि कुछ दिन निकल आया था जब ललिता को लादे हुए कमला घर पहुँची। यहाँ किशोरी के गायब होने से बड़ा ही हाहाकार मचा हुआ था। उसकी खोज में कई आदमी चारों तरफ जा चुके थे। किशोरी का नाना रणधीरसिंह भारी जमींदार होने के सिवाय बड़ा ही दिमागदार और जबर्दस्त आदमी था। उसने यही समझ रखा था कि शिवदत्त के दुश्मन वीरेन्द्रसिंह की तरफ से यह कार्रवाई की गयी है। मगर जब ललिता को लिये हुए कमला पहुँची और उसकी जुबानी सब हाल मालूम हुआ तब माधवी की बदमाशी पर बहुत बिगड़ा। वह माधवी की चाल-चलन पर पहले से ही रंज था मगर कुछ जोर न चलने से लाचार था। आज गुस्से के मारे इस बात का बिलकुल ध्यान न रहा कि माधवी एक भारी राज्य की मालिक है और ज़बर्दस्त फौज रखती है, उसने कमला के मुंह से सब हाल सुनते ही तलवार हाथ में ले कसम खा ली कि, "जिस तरह हो सकेगा, अपने हाथ से माधवी का सिर काट कलेजा ठंडा करूँगा।"

ललिता एक अँधेरी कोठरी में कैद की गयी और रणधीरसिंह की आज्ञा पा कमला अपने बड़े भाई हरनामसिंह को साथ ले किशोरी की मदद को पैदल ही चल दी।

कमला आज भी उसी कल वाले रास्ते पर रवाना हुई और दोपहर होते-होते उसी चौराहे पर पहुँची जहाँ कल ललिता मिली थी। वे दोनों बेधड़क सामने वाली सड़क पर चले।

चौराहे के आगे लगभग तीन कोस चले जाने बाद खराब और पथरीली राह मिली जिसे देख हरनामसिंह ने कहा, "इस राह से रथ ले जाने में जरूर तकलीफ हुई होगी।"

कमला-बेशक ऐसा ही हुआ होगा, और मुझे तो अभी तक निश्चय ही नहीं