शायद एक आदर्श भारतीय राज्य का स्वप्न रहा होगा जिसके तहत उन्होंने इतनी असंगति और व्यवस्था के बावजूद अपनी बात कही। उन्होंने 1857 के पहले स्वतन्त्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में भी इस रचना को देखकर इसके प्रति सोचने और समझने का नया दृष्टिकोण दिया है। हमारे विचार में 'चन्द्रकान्ता और चन्द्रकान्ता संतति' एक ऐसी महत्वपूर्ण रचना है जिसे एक प्रमुख सर्जनात्मक साहित्य अंश के रूप में देखना होगा। विराट कथानक और उसके बीच फैलता हुआ मूल्यहीनता का संसार के बाद सामंजस्य पूर्ण अंत, निश्चत ही एक ऐसे रचनाकार की दृष्टि से साक्षात कराता है जो केवल आपके मनोरंजन के लिए नहीं लिख रहा है, अपितु उससे परे उसका एक सृजनात्मक आशय भी है। चन्द्रकान्ता को लेकर इस सर्जनात्मक आशय की खोज बहुत कम हो पाई है। और आगे हम इस ओर कितना प्रवृत्त हो पायेंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी सोच में पुरानी कृतियों के लिए जो साँचा बन चुका है, उसे तोड़ने की मानसिकता में हम आते हैं या नहीं।...
डॉ॰ विनय
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