पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/८५

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दूसरा-जी हम दोनों आपकी रैयत हैं और गयाजी में रहते हैं, दोनों सगे भाई हैं, एक औरत के पीछे लड़ाई हो रही है कि जिसका फैसला आपसे चाहते हैं, बाकी हाल इतने आदमियों के सामने कहना हम लोग पसन्द नहीं करते।

कोतवाल साहब ने सिर्फ उन दोनों को वहां रहने दिया, बाकी सबको वहाँ से हटा दिया, निराला होने पर फिर उन दोनों से लड़ाई का सबब पूछा।

एक-हम दोनों भाई सरकार से कोई मौजा ठीका लेने के लिए यहाँ आ रहे थे। यहाँ से तीन कोस पर एक पहाड़ी है, कुछ दिन रहते ही हम दोनों वहाँ पहुँचे और थोड़ा सुस्ताने की नीयत से उतर पड़े, घोड़ों को चरने के लिए छोड़ दिया और एक पेड़ के नीचे पत्थर की चट्टान पर बैठ बातचीत करने लगे।

दूसरा-(सिर हिला कर) नहीं, कभी नहीं।

पहला-सरकार इसे हुक्म दीजिये कि चुप रहे, पहले मैं कह लूं, फिर जो कुछ इसके जी में आये कहे।

कोतवाल—(दूसरे को डाँट कर) बेशक ऐसा ही करना होगा!

दूसरा-बहुत अच्छा।

पहला-थोड़ी ही देर बैठे थे कि पास ही किसी औरत के रोने की बारीक आवाज आई जिसके सुनने से कलेजा पानी हो गया।

दूसरा-ठीक, बहुत ठीक।

कोतवाल-(लाल आँखें करके) क्यों जी, तुम फिर बोलते हो?

दूसरा-अच्छा, अब न बोलूँगा!

पहला-हम दोनों उठकर उसके पास गए। आह, ऐसी खूबसूरत औरत तो आज तक किसी ने न देखी होगी, बल्कि मैं जोर देकर कहता हूं कि दुनिया में ऐसी खूबसूरत कोई दूसरी न होगी। वह अपने सामने एक तस्वीर को, जो चौखटे में जड़ी हुई थी, रखे बैठी थी और उसे देख फूट-फूट कर रो रही थी।

कोतवाल-वह तस्वीर किसकी थी, तुम पहचानते हो?

पहला-जी हाँ, पहचानता हूँ, वह मेरी तस्वीर थी।

दूसरा-झूठ-झूठ, कभी नहीं, बेशक वह तस्वीर आपकी थी! मैं इस समय बैठा उस तस्वीर से आपकी सूरत मिलान कर गया, बिल्कुल आपसे मिलती है, इसमें कोई शक नहीं! आप इसके हाथ में गंगा-जल देकर पूछिये, किसकी तस्वीर थी?

कोतवाल-(ताज्जुब में आकर) क्या मेरी तस्वीर थी?

दूसरा-बेशक आपकी तस्वीर थी, आप इससे कसम देकर पूछिये तो सही।

कोतवाल-(पहले से) क्यों जो, तुम्हारा भाई क्या कहता है?

पहला-जी ई ई...

कोतवाल-(जोर से) साफ-साफ कहो, सोचते क्या हो?

पहला—जी, बात तो यही ठीक है, आप ही की तस्वीर थी।

कोतवाल—फिर झूठ क्यों बोले?