पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/७९

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अब तक तो रात अंधेरी थी, मगर अब विधाता ने किशोरी को यह बताने के लिए कि देख, तू किस बला में फँसी हुई है, तेरे रथ को चारों तरफ से घेरकर चलने वाले सवार कौन हैं, तू किस राह से जा रही है, यह पहाड़ी जंगल कैसा भयानक है-आसमान पर माहताबी जलाई। चन्द्रमा निकल आया और धीरे-धीरे ऊँचा होने लगा जिसकी रोशनी में किशोरी ने सब सामान देख लिये और एकदम चौंक उठी। चारों तरफ की भयानक पहाड़ी और जंगल ने उसका कलेजा दहला दिया। उसने उन सवारों की तरफ अच्छी तरह देखा जो रथ घेरे हुए साथ-साथ जा रहे थे। वह बखूबी समझ गई कि इन सवारों में, जैसा कि कहा गया था, कोई भी औरत नहीं, सब मर्द ही हैं। उसे निश्चय हो गया कि वह आफत में फँस गई है, और घबराहट में नीचे लिखे गए शब्द उसकी जुबान से निकल पड़े-

"चुनार तो पूरब में है, मैं दक्खिन तरफ क्यों जा रही हूँ? इन सवारों में तो एक भी लौंडी नजर नहीं आती। बेशक मुझे धोखा दिया गया। मैं निश्चय कह सकती हूँ कि मेरी प्यारी कमला कोई दूसरी ही है, अफसोस!"

रथ में बैठी हुई कमला किशोरी के मुँह से इन बातों को सुनकर होशियार हो गई और झट रथ से नीचे कूद पड़ी, साथ ही गाड़ीवान ने भी बैलों को रोका और सवारों ने बहुत पास आकर रथ को घेर लिया।

अब किशोरी को अपने धोखा खाने और आफ़त में फँस जाने का पूरा विश्वास हो गया और वह एकदम चिल्ला कर बेहोश हो गई।

3

सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी पहले सिरे का है। क्या मजाक कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घण्टे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए, आसमान के जगमगाते हुए तारे कितनी बेचैनी और उदासी के साथ हसरत-भरी निगाहों से जमीन की तरफ देख रहे हैं जिनकी सूरत और चलाचली की बेचैनी देख बागों की सुन्दर कलियों ने भी मुस्कुराना शुरू कर दिया है, अगर यही हालत रही तो सुबह होते तक जरूर खिलखिला कर हँस पड़ेंगी।

लीजिए अब दूसरा ही रंग बदला। प्रकृति की न मालूम किस ताकत ने आसमान की स्याही को धो डाला और इसकी हुकूमत की रात बीतते देख उदास तारों को भी बिदा होने का हुक्म सुना दिया। इधर बेचैन तारों की घबराहट देख अपने हुस्न और जमाल पर भूली हुई खिलखिला कर हँसने वाली कलियों को सुबह की ठण्डी-ठण्डी हवा ने खूब ही आड़े हाथों लिया और मारे थपेड़ों के उनके उस बनाव को बिगाड़ना शुरू कर दिया जो दो ही घण्टे पहले प्रकृति की किसी लौंडी ने दुरुस्त कर दिया था।

मोतियों से ज्यादे आबदार ओस की बूंदों को बिगाड़ते और हँसती हुई कलियों