लौंडियों को भी कुछ पता नहीं लगना चाहिए जिनको मैंने इस समय यहाँ से हटा दिया है।
किशोरी-वह रथ कहाँ खड़ा है?
कमला-इसी बगल वाली आम की बारी में रथ और चुनार से आये हुए लौंडी, गुलाम सब मौजूद हैं।
किशोरी–खैर, चलो, देखा जायगा। राम मालिक हैं।
किशोरी को साथ ले कमला चुपके से कमरे के बाहर निकली और पेड़ों में छिपती हुई बाग से निकल कर बहुत जल्द उस आम की बारी में जा पहुँची जिसमें रथ और लौंडी-गुलामों के मौजूद रहने का पता दिया था। वहाँ किशोरी ने कई लौंडी-गुलामों और उस रथ को भी मौजूद पाया जिसमें बहुत तेज चलने वाले ऊँचे काले रंग के नागौरी बैलों की जोड़ी जुती हुई थी। किशोरी और कमला दोनों सवार हुईं और रथ तेजी के साथ रवाना हुआ।
इधर घण्टा भर समय बीत जाने पर भी जब किशोरी ने अपनी सखियों और लौंडियों को आवाज न दी तब वे लाचार होकर बिना बुलाये उस कमरे में पहुँची जिस में कमला और किशोरी को छोड़ गई थीं। मगर वहाँ दोनों में से किसी को मौजूद न पाया। घबरा कर इधर-उधर ढूँढ़ने लगीं, मगर कहीं पता न चला। तमाम बाग छान डाला, पर किसी की सूरत दिखाई न पड़ी। सभी में खलबली मच गई, मगर क्या हो सकता था।
आधी रात तक कोलाहल मचता रहा। उसी समय कमला भी वहाँ आ मौजूद हुई। सभी ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और पूछा, "हमारी किशोरी कहाँ है?"
कमला—यह क्या मामला है जो तुम लोग इस बुरी तरह घबरा रही हो? क्या
किशोरी कहीं चली गई?
एक-चली नहीं गई तो कहाँ हैं? तुम उन्हें कहाँ छोड़ आई?
कमला-क्या किशोरी को मैं अपने साथ ले गई थी, जो मुझसे पूछती हो? वह कब से गायब है?
एक–पहर-भर से तो हम लोग ढूँढ़ ही रही हैं! तुम दोनों इसी कमरे में बातें कर रही थीं, हम लोगों को हट जाने के लिए कहा। फिर न मालूम क्या हुआ, कहाँ चली गईं।
कमला-बस-बस, अब मैं समझ गई। तुम लोगों ने धोखा खाया, मैं तो अभी चली ही आती हूँ। हाय, यह क्या हुआ! बेशक दुश्मन अपना काम कर गए और हम लोगों को आफत में डाल गए। हाय, अब मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ, किससे पूछूँ कि मेरी प्यारी किशोरी को कौन ले गया।