के उस तरफ अँधेरा न हो तो उस सूराख में आंख लगा कर उधर की चीज बखूबी देखने आ सकती है।
जब काली औरत मोमबत्ती गुल कर चुकी तो उसी ताली के सूराख से आती हुई एक बारीक रोशनी कोठरी के अन्दर मालूम पड़ी। उस ऐयारा ने सूराख में आँख लगा के देखा, एक बहुत बड़ा आलीशान कमरा बड़े तकल्लुफ से सजा हुआ नजर पड़ा, उसी कमरे में बेशकीमत मसहरी पर एक अधेड़ आदमी के पास बैठी कुछ बातचीत और हँसी-दिल्लगी करती हुई माधवी भी दिखाई पड़ी। अब विश्वास हो गया कि इसी से मिलने के लिए माधवी रोज आया करती है। इस मर्द में किसी तरह की खूबसूरती न थी तिस पर भी माधवी न मालूम इसकी किस खूबी पर जी-जान से मर रही थी और यहाँ आने में अगर इन्द्रजीतसिंह विघ्न डालते थे तो क्यों इतना परेशान हो जाती थी।
उस काली औरत ने इन्द्रजीतसिंह को भी उधर का हाल देखने के लिए कहा। कुमार बहुत देर तक देखते रहे। उन दोनों में क्या बातचीत हो रही थी, सो तो मालूम न हुआ मगर उनके हाव-भाव में मुहब्बत की निशानी पाई जाती थी। थोड़ी देर के बाद दोनों पलंग पर सो रहे। उसी समय कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने चाहा कि ताला खोल कर उस कमरे में पहुंचे और दोनों नालायकों को कुछ सजा दें, मगर काली औरत ने ऐसा करने से उन्हें रोका और कहा, "खबरदार, ऐसा इरादा भी न करना, नहीं तो हमारा बना-बनाया खेल बिगड़ जायेगा और बड़े-बड़े हौसलों के पहाड़ मिट्टी में मिल जायेंगे, बस, इस समय वापस चलने के और कुछ मुनासिब नहीं है।
काली औरत ने जो कुछ कहा, लाचार इन्द्रजीतसिंह को मानना और वहाँ से लौटना ही पड़ा। उसी तरह ताला खोलते और बन्द करते, बराबर चले आये और उस कमरे के दरवाजे पर पहुँचे, जिसमें इन्द्रजीतसिंह सोया करते थे। कमरे के अन्दर न जाकर काली औरत इन्द्रजीतसिंह को मैदान में ले गई और नहर के किनारे पर स्थित पत्थर की चट्टान पर बैठने के बाद दोनों में यों बातचीत होने लगी-
इन्द्रजीतसिंह-तुमने उस कमरे में जाने से व्यर्थ ही मुझे रोक दिया।
औरत-ऐसा करने के क्या फायदा होता? यह कोई गरीब कंगाल का घर नहीं है। बल्कि ऐसे की अमलदारी है, जिसके यहाँ हजारों बहादुर और एक-से-एक लड़ाके मौजूद हैं, क्या बिना गिरफ्तार हुए तुम निकल जाते? कभी नहीं। तुम्हारा यह सोचना भी ठीक नहीं है कि जिस राह से मैं आती-जाती हूँ उसी राह से तुम भी इस सरजमीन के बाहर हो जाओगे क्योंकि वह राह सिर्फ हम लोगों के आने-जाने लायक है, तुम उससे किसी तरह नहीं जा सकते फिर जान-बूझ। कर अपने को आफत में फँसाना कौन बुद्धिमानी थी!
इन्द्रजीतसिंह-क्या जिस राह से तुम आती-जाती हो, उससे मैं नहीं जा सकता?
औरत-कभी नहीं, इसका खयाल भी न करना।
इन्द्रजीतसिंह-सो क्यों?
औरत-इसका सबब भी जल्दी ही मालूम हो जायेगा।
इन्द्रजीतसिंह-खैर, तो अब क्या करना चाहिए?