पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/६८

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सब हाल मालूम होगा और हमारा काम भी निकलेगा।

इन्द्रजीतसिंह-मगर यह कैसे हो सकेगा? वह तो कोठरी के अन्दर जाते ही ताला बन्द कर लेती है।

औरत–हाँ सो ठीक है, मगर तुमने देखा होगा कि उस दरवाजे के बीचोंबीच में ताला जड़ा है जिसे खोल कर वह अन्दर गई और फिर उसी ताले को भीतर से बन्द कर लिया।

इन्द्रजीतसिंह-मैंने अच्छी तरह खयाल नहीं किया।

औरत-मैं बखूबी देख चुकी हूँ, उस ताले में बाहर-भीतर दोनों तरफ से ताली लगती है।

इन्द्रजीतसिंह-खैर, इससे मतलब?

औरत-मतलब यह है कि अगर इसी तरह की एक ताली हमारे पास भी हो, तो उसके पीछे जाने का अच्छा मौका मिले।

इन्द्रजीतसिंह-अगर ऐसा हो तो क्या बात!

औरत-यह कोई बड़ी बात नहीं है, जहाँ पर वह ताली रखती है वह जगह तो तुम्हें मालूम ही होगी?

इन्द्रजीतसिंह-हाँ, मालूम है।

औरत-बस तो मुझे वह जगह बता दो और तुम आराम करो। मैं कल आकर उस ताली का साँचा ले जाऊँगी और परसों उसी तरह की दूसरी ताली बना लाऊँगी।

जहाँ ताली रहती थी उस जगह का पता पूछ कर वह काली औरत चली गई और इन्द्रजीतसिंह अपने पलंग पर जा कर सो रहे।

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इन्द्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः मामूली समय पर माधवी को जाने नहीं दिया, आधी रात तक हँसी-दिल्लगी ही में काटी। इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इसलिए उन्हें नींद न आई, बारीक चादर से मुंह ढाँके पड़े रहे, मगर माधवो थोड़ी ही देर में सो गई।

वह काली औरत भी अपने मौके पर आ पहुँची। पहले तो उसने दरवाजे पर खड़े होकर झाँका, जब सन्नाटा मालूम हुआ तो अन्दर चली आई और दरवाजा धीरे-से बन्द कर लिया। इन्द्रजीतसिंह उठ बैठे। उसने अपने मुँह पर उँगली रख चुप रहने का इशारा किया और माधवी के पास पहुँच कर उसे देखा। मालूम हुआ कि वह अच्छी तरह सो रही है।

काली औरत ने अपने बटुए में से बेहोशी की बुकनी निकाली और धीरे से माधवी