थी और सुबह की सुफेदी के साथ लुपलुपाते हुए दो-चार तारे आसमान पर दिखाई दे रहे थे।
पहर दिन चढ़े तक ये दोनों बराबर चलती गईं, जब धूप कुछ कड़ी हुई, जंगल में एक जगह वेल के पेड़ों की घनी छाँह देखकर वहाँ टिक गई जिसके पास ही पानी का झरना बह रहा था। दोनों ने कमर से बटुआ खोला और कुछ मेवा निकाल कर खाने तथा पानी पीने के बाद जमीन पर नरम-नरम पत्ते बिछा कर सो रहीं।
ये दोनों तमाम रात की जगी हुई थीं, लेटते ही नींद आ गई। दोपहर तक खूब सोईं। जब पहर दिन बाकी रहा उठ बैठी और चश्मे के पानी से हाथ-मुँह धो फिर चल पड़ीं। इस तरह मौके-मौके पर टिकती हुई ये दोनों कई दिन तक बराबर चलती गई। एक दिन आधी रात तक बराबर चलते जाने के बाद एक तालाब के किनारे पहुँचीं जो बगल वाली पहाड़ी के नीचे सटा हुआ था।
इस लम्बे-चौड़े संगीन और निहायत खूबसूरत तालाब के चारों तरफ पत्थर की सीढ़ियाँ और छोटी-छोटी बारहदरियाँ इस तौर पर बनी हुई थीं जो बिल्कुल जल के किनारे ही पड़ती थीं। तालाब के ऊपर भी चारों तरफ पत्थर का फर्श और बैठने के लिए हर एक तरफ सिंहासन की तरह चार-चार चबूतरे निहायत खूबसूरत मौजूद थे। ताज्जुब की बात यह थी कि इस तालाब के बीच का जाट लकड़ी की जगह पीतल का इतना मोटा बना हुआ था कि दोनों तरफ दो आदमी खड़े होकर हाथ नहीं मिला सकते थे। जाट के ऊपर लोहे के एक बदसूरत आदमी का चेहरा उठाया हुआ था।
तालाब के ऊपर चारों तरफ बड़े-बड़े सायेदार दरख्त ऐसे घने लगे थे कि सभी की डालियाँ आपस में गुँथ रही थीं। दोनों उस तालाब पर खड़े होकर उसकी शोभा देखने लगीं। थोड़ी देर बाद दोनों एक चबूतरे पर बैठ गई, मगर मुंह तालाब ही थीं। यकायक जाट के पास का पानी खलबलाया और एक आदमी तैरता हुआ जल के ऊपर दिखाई दिया। इन दोनों की टकटकी उसी तरफ बँध गई, वह आदमी किनारे आया और ऊपर की सीढ़ी पर खड़ा हो चारों तरफ देखने लगा। अब मालूम हो गया कि वह औरत है। योगिनी और वनचरी ने चबूतरे के नीचे होकर अपने को छिपा लिया मगर उस औरत की तरफ बराबर देखती रहीं।
उस औरत की उम्र वहुत कम मालूम होती थी जो अभी-अभी तालाब से बाहर हो इधर-उधर सन्नाटा देख हवा में अपनी धोती सुखा रही थी। थोड़ी ही देर में साड़ी मुख गयी जिसे पहन कर उसने एक तरफ का रास्ता लिया।
मालूम होता है योगिनी और वनचरी इसी की ताक में बैठी थीं क्योंकि जैसे ही वह औरत वहाँ से चल खड़ी हुई, वैसे ही ये दोनों उस पर लपकी और जबरदस्ती गिरफ्तार कर लेना चाहा, मगर वह कमसिन औरत इन दोनों को अपनी तरफ आते देख और इन दोनों के मुकाबले अपनी जीत न समझ कर लौट पड़ी और फुर्ती के साथ उन दरख्तों में से एक पर चढ़ गई जो उस तालाब के चारों तरफ लगे हुए थे। योगिनी और वनचरी दोनों उस दरख्त के नीचे पहुँची, योगिनी खड़ी रही और वनचरी उसे की तरफ किये