पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
38
 


सुअर भागा जाता है, एक औरत घोड़े पर सवार हाथ में बरछी लिए इस ताक में खड़ी है कि सूअर पास आये तो बरछी से मार ले।

जब सूअर ऐसे ठिकाने पर पहुँचा जहाँ से वह औरत इतनी दूर रह गई जितनी दूर उसके पीछे भीमसेन था वह बाईं तरफ को मुड़ा और पहले से ज्यादा तेजी के साथ भागा। भीमसेन और वह औरत दोनों ही ने उसके पीछे घोड़ा फेंका मगर भीमसेन से पहले उस औरत ने पहुंच कर बरछी मारी जिसके लगते ही वह सूअर गिरा।

अपना शिकार एक औरत के हाथ से मरते देख भीमसेन को क्रोध चढ़ आया और आँखें लाल हो गईं। ललकार कर औरत से बोला-"तूने मेरे शिकार पर क्यों बरछी चलाई?"

औरत—क्या शिकार पर तुम्हारा नाम खुदा हुआ था?

भीमसेन—क्यों नहीं? मेरा जंगल, मेरा शिकार। इतनी देर से मैं इसके पीछे चला आ रहा हूँ!

औरत-वाह रे तेरा जंगल और वाह रे तेरा शिकार! तीन कोस से दौड़े चले आते हैं, एक सूअर न मारा गया। शर्म तो आती नहीं, उल्टे लाल आँखें कर मर्दानगी दिखा रहे हैं!

भीमसेन—क्या कहूँ, तेरी खूबसूरती पर रहम आता है, औरत समझ कर छोड़ देता हूँ, नहीं तो जरूर मजा चखा देता।

औरत-मैं भी छोकरा समझ कर छोड़ देती हूँ, नहीं तो दोनों कान पकड़ कर उखाड़ लेती!

भीमसेन–(दांत पीस कर) बस, अब सहा नहीं जाता। जुबान सम्हाल।

औरत-नहीं सहा जाता तो अपने हाथ से अपना मुँह पीट! यहाँ तो जुवान हमेशा योंही चलती रही है और चलती रहेगी!

इस औरत की खूबसूरती, सवारी का ढंग, बदन की सुडौली और फुर्ती यहाँ तक बढ़ी-चढ़ी थी कि आदमी घण्टों देखा करे और जी न भरे, मगर इसकी जली-कटी बातों ने भीमसेन को आपे से बाहर कर दिया। आखों के आगे अँधेरा छा गया, बिना कुछ सोचे-बिचारे उस औरत पर बरछी का वार किया। औरत ने बड़ी फुर्ती से बर्छी को ढाल पर रोका और हँस कर कहा, "कुछ और हौसला रखता हो तो दिखा!"

घण्टे भर तक दोनों में बरछी की लड़ाई हुई। इस समय अगर कोई इस फन का उस्ताद होता तो उस औरत की फुर्ती देख बेशक खुश हो जाता और 'वाह-वाह' या 'शाबाश' कहे बिना न रहता। आखिर उस औरत की बरछी जिसका फल जहर से बुझाया हुआ था भीमसेन की जाँघ में लगी जिसके लगते ही तमाम बदन में जहर फैल गया और वह बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ा।