पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/४५

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मगर वाह रे आनन्दसिंह! एक झटका दिया कि चारों दूर जा गिरे। इतने में बाहर से आवाज आई-

"आनन्दसिंह खबरदार! जो किया सो ठीक किया। अब आगे कुछ हौसला न करना, नहीं तो सजा पाओगे!!"

आनन्दसिंह ने घबरा कर बाहर की तरफ देखा तो एक योगिनी नजर पड़ी जो जटा बढ़ाये भस्म लगाये गेरुआ वस्त्र पहने दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में आग से भरा धधकता हुआ खप्पर, जिसमें कोई खुशबूदार चीज जल रही थी और बहुत धुआँ निकल रहा था, लिए हुए आ मौजूद हुई।

ताज्जुब में आकर सभी उसकी सुरत. देखने लगे। थोड़ी देर में उस खप्पर से निकला हुआ धुआँ सुरंग की कोठरी में भर गया और उसके असर से जितने वहाँ थे सभी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। बस, अकेली वही योगिनी होश में रही जिसने सभी को बेहोश देख कोने में पड़े हुए घड़े से जल निकाल खप्पर की आग बुझा दी।

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो गई थी, पर लड़की किशोरी की उम्र अभी पन्द्रह वर्ष से ज्यादा न होगी। इस समय बेचारी किशोरी शिवदत्तगढ़ में मौजूद नहीं है क्योंकि महाराज शिवदत्त ने रंज होकर उसे उसके ननिहाल भेज दिया है। रंज होने का कारण हम यहाँ पर नहीं लिखते, क्योंकि यह बहुत पेचीदा बात है, खुलते-खुलते खुल जायेगी।

भीमसेन शिवदत्तगढ़ में मौजूद है। उसे सिपहगिरी से बहुत शौक है, बदन में ताकत भी अच्छी है। तलवार खंजर नेजा तीर गदा इत्यादि चलाने में होशियार और राजकाज के मामले में भी तेज है मगर अपने पिता महाराज शिवदत्त की चाल को पसन्द नहीं करता, पर फिर भी महाराज शिवदत्त को उससे बहुत ही ज्यादा प्रेम है।

एक दिन भीमसेन मामूली तौर पर बीस हमजोलियों को साथ ले घोड़े पर सवार हो शिकार खेलने के लिए शिवदत्तगढ़ के बाहर निकला और एक ऐसे जंगल में गया जिसमें बनैले सूअर बहुत थे। उसका इरादा भी यही था कि घोड़ा दौड़ा कर बरछे से बनैले सूअर को मारे।

जंगल में घूमने-फिरने लगे। एक ताकतवर और मजबूत सूअर भीमसेन की बगल से होता हुआ पूरब की तरफ भागा। भीमसेन ने भी उसके पीछे घोड़ा दौड़ाया, मगर वह बहुत तेजी के साथ भागा जा रहा था इसलिए बहुत दूर निकल गया। उसके संगी-साथी सब पीछे छूट गए। यकायक भीमसेन देखा कि कि सामने की तरफ जिधर