पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/३५

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के आगे आग जल रही है। आनन्दसिंह उसी तरफ चले और थोड़ी ही देर में कुटी के पास पहुँचकर देखा कि पत्तों की बनाई हुई हरी झोंपड़ी के आगे आठ-दस आदमी जमीन पर फर्श बिछाये बैठे हैं जो कि दाढ़ी और पहरावे से साफ मुसलमान मालूम पड़ते हैं। बीच में दो मोमी शमादान जल रहे हैं। एक आदमी फारसी के शेर पढ़कर सुना रहा है, और बाकी सब 'वाह-वाह' की धुन लड़ा रहे हैं। एक तरफ आग जल रही है और दो-तीन आदमी कुछ खाने की चीजें पका रहे हैं। आनन्दसिंह फर्श के पास जाकर खड़े हो गये।

आनन्दसिंह को देखते ही सबके सब उठ खड़े हुए और बड़ी इज्जत से उनको फर्श पर बैठाया। उस आदमी ने जो फारसी के शेर पढ़-पढ़कर सुना रहा था, खड़े हो रँगीली भाषा में कहा, "खुदा का शुक्र है कि शाहजादे-चुनार ने इस मजलिस में पहुँच-कर हम लोगों की इज्जत को 'फल्के-हफ्तुम'[१] तक पहुँचाया। इस बियाबान जंगल में हम लोग क्या खातिर कर सकते हैं सिवाय इससे कि इनके कदमों को अपनी आँखों पर जगह दें और इत्र व इलायची पेश करें!"

केवल इतना ही कहकर इत्रदान और इलायची की डिब्बी उनके आगे ले गया। पढ़े-लिखे भले आदमियों की खातिर जरूरी समझकर आनन्दसिंह ने इत्रसूंघा और इलायची ले लीं। इससे बाद इनसे इजाजत लेकर वह फिर फारसी कविता पढ़ने लगा। दूसरे आदमियों ने दो-एक तकिये इनके अगल-बगल में रख दिये।

इत्र की विचित्र खुशबू ने इनको मस्त कर दिया, इनकी पलकें भारी हो गयीं और बेहोशी ने धीरे-धीरे अपना असर जमा कर इनको फर्श पर सुला दिया। दूसरे दिन दोपहर को आँख खुलने पर इन्होंने अपने को एक दूसरे ही मकान में मसहरी पर पड़े हुए पाया। घबराकर उठ बैठे और इधर-उधर देखने लगे।

पाँच कमसिन और खूबसूरत औरतें सामने खड़ी दिखाई दीं, जिनमें से एक सरदारिन की तरह कुछ आगे बढ़ी हुई थी। उसके हुस्न और अदा को देख आनन्दसिंह दंग हो गये। उसकी बड़ी-बड़ी आंखों और बाँकी चितवन ने उन्हें आपे से बाहर कर दिया, उसकी जरा-सी हंसी ने इनके दिल पर बिजली गिराई, और आगे बढ़ हाथ जोड़ इस कहने ने तो और भी सितम ढाया कि-"क्या आप मुझसे खफा हैं?"

आनन्दसिंह भाई की जुदाई, रात की बात, ऐयारों के धोखे में पड़ना, सब-कुछ बिलकुल भूल गये और उसकी मुहब्बत में चूर होकर बोले-"तुम्हारी-सी परीजमाल से और रंज!"

वह औरत पलंग पर बैठ गयी और आनन्दसिंह के गले में हाथ डाल के बोली, "खुदा की कसम खाकर कहती हूँ कि सालभर से आपके इश्क ने मुझे बेकार कर दिया। सिवाय आपके ध्यान के खाने-पीने की बिलकुल सुध नहीं रहती, मगर मौका न मिलने से लाचार थी।"


  1. मुसलमानों की किताबों में सात दर्जे आसमान के लिखे हैं। सबसे ऊपर वाले दर्जे का नाम फल्के-हफ्तुम है।