पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/३१

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बूढ़ा-अभी घंटा-भर भी नहीं हुआ जब किसी ने आ के कहा था कि महाराज खुद आने वाले हैं, क्या वह बात झूठ थी?

रामनारायण–हाँ, महाराज आने वाले थे, मगर अब न आवेंगे।

बूढ़ा—अच्छा, आप दोनों आदमी इसी जगह बैठे और कैदी की हिफाजत करें। मैं जाता हूँ।

रामनारायण-बहुत अच्छा।

रामनारायण और चुन्नीलाल को कोठरी के अन्दर बैठा कर बूढ़ा दारोगा बाहर आया और चालाकी से झट उस कोठरी का दरवाजा बन्द करके बाहर से बोला, "बन्दगी! मैं दोनों को पहचान गया कि ऐयार हो! कहिये, अब हमारी कैद में आप फंसे या नहीं? मैंने भी क्या मजे में पता लगा लिया। पूछा कि अभी तो मालूम हुआ था कि महाराज खुद आने वाले हैं, आपने भी झट कबूल कर लिया और कहा कि 'हाँ आने वाले थे मगर अब न आवेंगे।' यह न समझे कि मैं को देता हूँ। इसी अक्ल पर ऐयारी करते हो? खैर, आप लोग भी इसी कैदखाने की हवा खाइये और जान लीजिए कि मैं बाकरअली ऐयार आप जैसेलोगों को मजा चखाने के लिए ही इस जगह बैठाया गया हूँ।"

बूढ़े की बात सुन रामनारायण और चुन्नीलाल चुप हो गए, बल्कि शरमा कर सिर नीचा कर लिया। बूढ़ा दारोगा वहाँ से रवाना हुआ और शिवदत्त के पास पहुँच इन दोनों ऐयारों के गिरफ्तार करने का हाल कहा। महाराज ने खुश होकर बाकरअली को इनाम दिया और खुशी-खुशी खुद रामनारायण और चुन्नीलाल को देखने आये।

बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषीजी को भी यह मालूम हो गया कि हमारे साथियों में से दो ऐयार पकड़े गए। अब तो एक की जगह तीन आदमियों के छुड़ाने के फिक्र करनी पड़ी।

कुछ रात गए ये तीनों ऐयार घूम फिर कर शहर के बाहर की तरफ जा रहे थे कि पीछे से काले कपड़े से अपना तमाम बदन छिपाये एक आदमी लपकता हुआ उनके पास आया और लपेटा हुआ एक छोटा-सा कागज उनके सामने फेंक और अपने साथ आने के लिए हाथ से इशारा करके तेजी से आगे बढ़ा।

बद्रीनाथ ने उस पुर्जे को उठा कर सड़क के किनारे एक बनिये की दुकान पर जलते हुए चिराग की रोशनी में पढ़ा, सिर्फ इतना ही लिखा था-"भैरोंसिंह"। बद्रीनाथ समझ गए कि भैरोंसिंह किसी तरकीब से निकल भागा है और यही जा रहा है। बद्रीनाथ ने भैरोंसिंह के हाथ का लिखा भी पहचाना।

भैरोंसिंह पुर्जा फेंककर इन तीनों को हाथ के इशारे से बुला गया था और दस-बारह कदम आगे बढ़कर अब इन लोगों के आने की राह देख रहा था।

बद्रीनाथ वगैरह खुश होकर आगे बढ़े और उस जगह पहुँचे जहाँ भैरोंसिंह काले कपड़े से बदन को छिपाये सड़क के किनारे आड़ देकर खड़ा था। बातचीत करने का मौका न था, आगे-आगे भैरोंसिंह और पीछे-पीछे बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषीजी