पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२५

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या कोई और? इसकी मुहब्बत के दरिया में हमारा बेड़ा क्योंकर पार होगा?

कुअर इन्द्रजीतसिंह ने आज बहाना करना भी सीख लिया और घड़ी भर में ही उस्ताद हो गए। पेट फूला है, भोजन न करेंगे, सिर में दर्द है, किसी का बोलना बुरा मालूम होता है, सन्नाटा हो तो शायद नींद आए, इत्यादि बहानों से उन्होंने अपनी जान बचाई और तमाम रात चारपाई पर करवटें बदल-बदल कर इस फिक्र में काटी कि सवेरा हो तो सौदागर को बुला कर कुछ पूछे।

सवेरे उठते ही जवहरी को हाजिर करने का हुक्म दिया, मगर घण्टे-भर के बाद चोवदार ने वापस आकर अर्ज किया कि सराय में सौदागर का पता नहीं लगता।

इन्द्रजीतसिंह-उसने अपना डेरा कहाँ पर बतलाया था?

चोबदार-तावेदार को तो उसकी जुबानी यही मालूम हुआ था कि सराय में उतरेगा, मगर वहाँ दरियाफ्त करने से मालूम हुआ कि कोई सौदागर नहीं आया।

इन्द्रजीतसिंह-किसी दूसरी जगह उतरा होगा, पता लगाओ।

"बहुत खूब" कह कर चोबदार तो चला गया मगर इन्द्रजीतसिंह कुछ तरद्दुद में पड़ गये। सिर नीचा करके सोच रहे थे कि किसी के पैर की आहट ने चौंका दिया, सिर उठा कर देखा तो कुँअर आनन्दसिंह थे।

आनन्दसिंह–स्नान का समय तो हो गया।

इन्द्रजीतसिंह–हाँ, आज कुछ देर हो गई।

आनन्दसिंह-तबीयत कुछ सुस्त मालूम होती है?

इन्द्रजीतसिंह-रात भर सिर में दर्द था।

आनन्दसिंह-अब कैसा है?

इन्द्रजीतसिंह–अब तो ठीक है।

आनन्दसिंह-कल कुछ झलक सी मालूम पड़ी थी कि उस अंगूठी में कोई तस्वीर जड़ी हुई है जो उस जौहरी ने नजर की थी।

इन्द्रजीतसिंह-हाँ, थी तो।

आनन्दसिंह-कैसी तस्वीर है?

इन्द्रजीतसिंह-न मालूम वह अंगूठी कहाँ रख दी कि मिलती ही नहीं। मैंने भी सोचा था कि दिन को अच्छी तरह देखूगा, मगर...

ग्रन्थकर्ता-सच है, इसकी गवाही तो मैं भी दूंगा!

अगर भेद खुल जाने का डर न होता तो कुँअर इन्द्रजीतसिंह सिवा 'ओफ' करने और लम्बी-लम्बी साँसे लेने के कोई दूसरा काम न करते मगर क्या करें लाचारी से सभी मामूली काम और अपने दादा के साथ बैठकर भोजन भी करना पड़ा, हाँ शाम को इनकी बेचैनी बहुत बढ़ गई जब सुना कि तमाम शहर छान डालने पर भी उस जवहरी का कहीं पता न लगा और यह भी मालूम हुआ कि उस जवहरी ने बिलकुल झूठ कहा था कि महाराज का दर्शन कर आया हूँ, अब कुमार के दर्शन हो जायँ तब आराम से सराय में डेरा डालूँ। वह वास्तव में महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह से नहीं मिला था।

तीसरे दिन इनको बहुत ही उदास देख आनन्दसिंह ने किश्ती पर सवार होकर