पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२४३

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(तेजसिंह की तरफ देखकर) तुमने कहा था कि इन्द्रजीतसिंह का कुछ हाल मालूम हो चुका है?

तेजसिंह-जी हाँ, बेशक मैंने कहा था और उसका खुलासा हाल इस समय आपको मालूम हुआ चाहता है, मगर इसके पहले मैं दो-चार बातें राजा साहब से (दिग्विजयसिंह की तरफ इशारा करके) पूछना चाहता हूँ जो बहुत जरूरी हैं, इसके बाद अपने मामले में बातचीत करूँगा।

वीरेन्द्रसिंह-कोई हर्ज नहीं।

दिग्विजयसिंह-हाँ-हाँ, पूछिये।

तेजसिंह-आपके यहाँ पहले शेरसिंह[१] नाम का कोई ऐयार था?

दिग्विजय-हाँ था, बेचारा बहुत ही नेक, ईमानदार और मेहनती आदमी था और ऐयारी के फन में पूरा उस्ताद था। रामानन्द और गोविन्द सिंह उसी के चेले हैं। उसके भाग जाने का मुझे बहुत ही रंज है। आज के दो-तीन दिन पहले दूसरी तरह का रंज था, मगर आज और तरह का अफसोस है।

तेजसिंह-दो तरह का रंज और अफसोस! इसका मतलब मेरी समझ में नहीं आया। कृपा कर साफ-साफ कहिये।

दिग्विजयसिंह-पहले उसके भाग जाने का अफसोस क्रोध के साथ था मगर आज इस बात का अफसोस है कि जिन बातों को सोच कर वह भागा था, वे बहुत ठीक थीं। उसकी तरफ से मेरा रंज होना अनुचित था। यदि इस समय वह होता तो बड़ी खुशी से आपके काम में मदद करता।

तेजसिंह-उससे आप क्यों रंज हुए थे और वह क्यों भाग गया था?

दिग्विजयसिंह-इसका सगव यह था कि जब मैंने किशोरी को अपने कब्जे में कर लिया तो उसने मुझे बहुत-कुछ समझाया और कहा कि 'आप ऐसा काम न कीजिए बल्कि किशोरी को राजा वीरेन्द्रसिंह के यहाँ भेज दीजिये।' यह बात मैंने मंजूर न की, बल्कि उससे नाखुश होकर मैंने इरादा कर लिया कि उसे कैद कर लूँ। असल बात यह है कि मुझसे और रणधीरसिंह से दोस्ती थी, शेरसिंह मेरे यहाँ रहता था और उसका छोटा भाई गदाधरसिंह, जिसकी लड़की कमला है, आप उसे जानते होंगे...

तेजसिंह-हाँ-हाँ, हम सब कोई उसे अच्छी तरह जानते हैं।

दिग्विजयसिंह-खैर, तो गदाधरसिंह, रणधीरसिंह के यहाँ रहता था। गदाधर सिंह को मरे बहत दिन हो गये, इसी बीच में मुझसे और रणधीरसिंह से भी कुछ बिगड़ गई। इधर जब मैंने रणधीरसिंह की नातिनी किशोरी को अपने लड़के के साथ ब्याहने का बन्दोबस्त किया तो शेरसिंह को बहुत बुरा मालूम हुआ। मेरी तबीयत भी शेरसिंह से फिर गईं। मैंने सोचा कि शेरसिंह की भतीजी कमला हमारे यहाँ से किशोरी को निकाल ले जाने का जरूर उद्योग करेगी और इस काम में अपने चाचा शेरसिंह से


  1. शेरसिंह (कमला का चाचा) जिसका हाल इस सन्तति के तीसरे भाग के तेरहवें बयान में लिखा गया है।