पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२४१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
233
 


कल्याणसिंह को लाने के लिए भी कई आदमी चुनारगढ़ रवाना किए गए।

इन सब कामों से छुट्टी पाकर लाली के बारे में बातचीत होने लगी। तेजसिंह ने दिग्विजय सिंह से पूछा कि लाली कौन है और आपके यहाँ कब से है? इसके जवाब में दिग्विजयसिंह ने कहा कि लाली को हम बखूबी नहीं जानते। महीने भर से ज्यादा न हआ होगा कि चार-पांच दिन के आगे-पीछे लाली और कुन्दन दो नौजवान औरतें मेरे यहाँ पहुँचीं। उनकी चाल-ढाल और पोशाक से मुझे मालूम हुआ कि किसी इज्जतदार घराने की लड़कियां हैं। पूछने पर उन दोनों ने अपने को इज्जतदार घराने की लड़की जाहिर भी किया और कहा कि मैं अपनी मुसीबत के दो-तीन महीने आपके यहां काटना चाहती हैं। रहम खाकर मैंने उन दोनों को इज्जत के साथ अपने यहाँ रखा, बस, इसके सिवाय और मैं कुछ नहीं जानता।

तेजसिंह-बेशक इसमें कोई भेद है, वे दोनों साधारण औरतें नहीं हैं।

ज्योतिषीजी-एक ताज्जुब की बात मैं सुनाता हूँ।

तेजसिंह-वह क्या?

ज्योतिषीजी-आपको याद होगा कि इस तहखाने का हाल कहते समय मैंने कहा था कि जब तहखाने में किशोरी और लाली को मैंने देखा, तो दोनों का नाम लेकर पुकारा जिससे उन दोनों को आश्चर्य हुआ।

तेजसिंह-हाँ-हाँ, मुझे याद है। मैं यह पूछने ही वाला था कि लाली को आपने कैसे पहचाना?

ज्योतिषीजी-बस, यही वह ताज्जुब की बात है जो अब मैं आपसे कहता हूँ।

तेजसिंह-कहिए, जल्द कहिए।

ज्योतिषीजी-एक दफे रोहतासगढ़ के तहखाने में बैठे-बैठे मेरी तबीयत घबराई तो मैं कोठरियों को खोल-खोल कर देखने लगा। उस ताली के झब्बे में, जो मेरे हाथ लगा था, एक ताली सबसे बड़ी है जो तहखाने की सब कोठरियों में लगती है मगर बाकी बहुत सी तालियों का पता मुझे अभी तक नहीं लगा कि कहाँ की हैं।

तेजसिंह-खैर, तब क्या हुआ?

ज्योतिषीजी-सब कोठरियों में अंधेरा था। चिराग ले जाकर मैं कहाँ तक देखता, मगर एक कोठरी में दीवार के साथ चमकती हुई कोई चीज दिखाई दी। यद्यपि कोठरी में अँधेरा था, तो भी अच्छी तरह मालूम हो गया कि यह कोई तस्वीर है। उस पर ऐसा मसाला लगा हुआ था कि अँधेरे में भी वह तस्वीर साफ मालूम होती थी। आँख, कान, नाक, बल्कि बाल तक साफ मालूम होते थे। तस्वीर के नीचे 'लाली' ऐसा लिखा हुआ था। मैं बड़ी देर तक ताज्जुब से उस तस्वीर को देखता रहा, आखिर कोठरी बन्द करके अपने ठिकाने चला आया। उसके बाद जब किशोरी के साथ मैंने लाली को देखा तो साफ पहचान लिया कि वह तस्वीर इसी की है। मैंने तो सोचा था कि लाली उसी जगह की रहने वाली है इसीलिए उसकी तस्वीर वहाँ पाई गई, मगर इस समय महाराज दिग्विजयसिंह की जुबानी उसका हाल सुनकर ताज्जुब होता है, लाली अगर वहाँ की रहने वाली नहीं, तो उसकी तस्वीर वहाँ कैसे पहुँची?