अस्सी वर्ष का बुड्ढा है, तीसरे वह कहता है कि अभी इस शहर में पहुँचा हूँ, महाराज का तो दर्शन कर चुका हूँ, सरकार के भी दर्शन हो जायें तब आराम से सराय में डेरा डालूं और हमेशा से उसका यही दस्तूर भी है।
इन्द्रजीतसिंह-अगर ऐसा है तो उसे आने ही देना मुनासिब है।
आनन्दसिंह-अब आज किश्ती पर सैर करने का रंग नजर नहीं आता।
इन्द्रजीतसिंह—क्या हर्ज है, कल सही।
चोबदार सलाम करके चला गया और थोड़ी देर में सौदागर को लेकर हाजिर हुआ। हकीकत में वह सौदागर बहुत ही बुड्ढा था, रेयासत और शराफत उसके चेहरे से बरसती थी। आते ही सलाम करके उसने दोनों भाइयों को दो अंगूठियाँ दी और कबूल होने के बाद इशारा पाकर जमीन पर बैठ गया।
इस बुड्ढे जवहरी की इज्जत की गयी, मिजाज का हाल तथा सफर की कैफियत पूछने के बाद डेरे पर जाकर आराम करने और कल फिर हाजिर होने का हुक्म हुआ, सौदागर सलाम करके चला गया।
सौदागर ने जो दो अंगूठियाँ दोनों भाइयों को नजर दी थीं उनमें आनन्दसिंह की अंगूठी पर निहायत खुशंरंग मानिक जड़ा हुआ था और इन्द्रजीतसिंह की अंगूठी पर सिर्फ एक छोटी-सी तस्वीर थी जिसे कल फिर एक दफे निगाह भरकर इन्द्रजीतसिंह ने देखा और कुछ सोच चुप ही रहे।
एकान्त होने पर रात को शमादान की रोशनी में फिर उस अंगूठी को देखा जिसमें नगीने की जगह एक कमसिन हसीन औरत की तस्वीर जड़ी हुई थी। चाहे यह तस्वीर कितनी ही छोटी क्यों न हो मगर मुसौवर ने गजब की सफाई इसमें खर्च की थी। इसे देखते-देखते एक मरतबे तो इन्द्रजीतसिंह की यह हालत हो गई कि अपने को और उस औरत की तस्वीर को भूल गए, मालूम हुआ कि स्वयं वह नाजनीन इनके सामने बैठी है और यह उससे कुछ कहना चाहते हैं, मगर उसके हुस्न के रुआब में आकर चुप रह जाते हैं। यकायक यह चौंक पड़े और अपनी बेवकूफी पर अफसोस करने लगे, लेकिन इससे क्या होता है? उस तस्वीर ने तो एक ही सायत में इनके लड़कपन को धूल में मिला दिया और नौजवानी की दीवानी सूरत इनके सामने खड़ी कर दी। थोड़ी देर पहले सवारी शिकार कसरत वगैरह के पेचीले कायदे दिमाग में घूम रहे थे, अब ये एक दूसरी ही उलझन में फंस गये और दिमाग किसी अद्वितीय रत्न के मिलने की फिक्र में गोते खाने लगा। महाराज शिवदत्त की तरफ से अब क्या ऐयारी होती है, भैरोंसिंह क्योंकर और कब कैद से छूटते हैं, देखें, बद्रीनाथ वगैरह शिवदत्तगढ़ में जाकर क्या करते हैं, अब शिकार खेलने की नौबत कब तक आती है, एक ही तीर में शेर को गिरा देने का मौका कब मिलता है, किश्ती पर सवार हो दरिया की सैर करने कब जाना चाहिए इत्यादि खयालों को भूल गए। अब तो यह फिक्र पैदा हुई कि सौदागर को यह अंगूठी क्योंकर हाथ लगी? यह तस्वीर खयाली है या असल में किसी ऐसी की है जो इस दुनिया में मौजूद है? क्या सौदागर उसका पता-ठिकाना जानता होगा? खूबसूरती की इतनी ही हद है या और भी कुछ है? नजाकत, सुडौली और सफाई वगैरह का खजाना यही है