पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२३६

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भूल कबूल की और गर्दन नीची करके सोचने लगे। उसी समय राजा ने पुकार कर अपने आदमियों से कहा, "इस नकली दारोगा को भी गिरफ्तार कर लो और अच्छी तरह आजमाओ कि यहाँ का दारोगा है या वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार!"

बात की बात में दारोगा साहब की मुश्कें बाँध ली गयीं और राजा ने दो आदमियों को गरम पानी लाने का हुक्म दिया। नौकरों ने यह समझ कर कि यहाँ पानी गरम करने में देर होगी, ऊपर दीवानखाने में हरदम गरम पानी मौजूद रहता है, वहाँ से लाना उत्तम होगा, महाराज से आज्ञा चाही। महाराज ने इसको पसन्द करके ऊपर दीवानखाने से पानी लाने का हक्म दिया।

दो नौकर गरम पानी लाने के लिए दौड़े, मगर तुरन्त लौट आकर बोले, "ऊपर जाने का रास्ता तो बन्द हो गया।"

महाराज-सो क्यों! रास्ता कैसे बन्द हो सकता है? नौकर-क्या जाने, ऐसा क्यों हुआ?

महाराज-ऐसा कभी नहीं हो सकता! (ताली दिखाकर) देखो, यह ताली मेरे पास मौजूद है, इस ताली के बिना कोई कैसे उन दरवाजों को बन्द कर सकता है?

नौकर-जो हो, मैं कुछ नहीं अर्ज कर सकता, सरकार खुद चलकर देख लें।

राजा ने स्वयं जाकर देखा तो ऊपर जाने का रास्ता अर्थात दरवाजा बन्द पाया। ताज्जुब हुआ और सोचने लगा कि दरवाजा किसने बन्द किया! ताली तो मेरे पास थी! आखिर दरवाजा खोलने के लिए ताली लगाई मगर ताला न खुला। आज तक इसी ताली से बराबर इस तहखाने में आने-जाने का दरवाजा खोला जाता था, लेकिन इस समय ताली कुछ काम नहीं करती। यह अनोखी बात, जो राजा दिग्विजयसिंह के ध्यान में कभी न आयी थी, आज यकायक पैदा हो गयी। राजा के ताज्जुब की कोई हद न रही। उस तहखाने में और भी बहुत से दरवाजे उसी ताली से खुला करते थे। दिग्विजयसिंह ने ताली ठोंक-पीटकर एक-दूसरे दरवाजे में लगाई, मगर वह भी न खला। राजा की आँखों में आंसू भर आये और यकायक उसके मुँह से यह आवाज निकली, "अब इस तहखाने की और हम लोगों की उम्र पूरी हो गयी।"

राजा दिग्विजयसिंह घबराया हुआ चारों तरफ घूमता और घड़ी-घड़ी दरवाजों में ताली लगाता था, इतने ही में उस काले रंग की भयानक मूर्ति के मुँह में से, जिसके सामने एक औरत की बलि दी जा चुकी थी, एक तरह की आवाज निकलने लगी। यह भी एक नयी बात थी। दिग्विजयसिंह और जितने आदमी वहाँ थे, सब डर गये तथा उसी तरफ देखने लगे। काँपता हुआ राजा उस मूर्ति के पास जाकर खड़ा हो गया और गौर से सुनने लगा कि क्या आवाज आती है।

थोड़ी देर तक वह आवाज समझ में न आयी, इसके बाद यह सुनाई पड़ा-"तेरी ताली केवल बारह नम्बर की कोठरी को खोल सकेगी। जहाँ तक जल्दी हो सके, किशोरी को उसमें बन्द कर दे, नहीं तो सभी की जान मुफ्त में जायगी!"

यह नयी अद्भुत और अनोखी बात देख-सुनकर राजा का कलेजा दहलने लगा, मगर उसकी समझ में कुछ न आया कि यह मूर्ति क्योंकर बोली! आज तक कभी ऐसी

च॰ स॰-1-14