देखा था, इशारा पाते ही उठ खड़ी हुई और कुछ आगे बढ़कर नानक से बातचीत करने लगी।
औरत––नानकप्रसाद, इसके कहने की तो जरूरत नहीं कि तुम मुजरिम बनाकर यहाँ लाये गये हो और तुम्हें किसी तरह की सजा दी जायगी।
नानक––हाँ, बेशक मैं मुजरिम बनाकर लाया गया हूँ मगर असल में मुजरिम नहीं हूँ और न मैंने कोई कसूर ही किया है।
औरत––तुम्हारा कसूर यही है कि तुमने वह बड़ी तस्वीर, जो बाबाजी के कमरे में थी और जिस पर पर्दा पड़ा हुआ था, बिना आज्ञा के देखी। क्या तुम यह नहीं जानते कि जिस तस्वीर पर पर्दा पड़ा हो, उसे बिना आज्ञा के नहीं देखना चाहिए?
नानक––(कुछ सोच कर) बेशक यह कसूर तो हुआ।
औरत––हमारे यहाँ का कानून यही है कि जो ऐसा कसूर करे, उसका सिर काट लिया जाय।
नानक––अगर ऐसा कानून है तो इसे जुल्म ही कहना चाहिए!
औरत––जो हो, मगर अब तुम किसी तरह बच नहीं सकते।
नानक––खैर, मैं मरने से नहीं डरता और खुशी से मरना कबूल करता हूँ यदि आप मुझे मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दें!
औरत––तुम मरने से तो किसी तरह इनकार नहीं कर सकते, मगर मेहरबानी करके तुम्हारे एक सवाल का जवाब मिल सकता है। ज्यादा सवाल तुम नहीं कर सकते। पूछो, क्या पूछते हो?
नानक––(कुछ देर तक सोच कर) खैर, जब एक ही सवाल का जवाब मिल सकता है तो मैं यह पूछता हूँ कि (रामभोली की तरफ इशारा करके) यह यहाँ क्योंकर आईं और यहाँ इन्हें इतनी बड़ी इज्जत क्योंकर मिली?
औरत––ये तो दो सवाल हुए! अच्छा, इनमें से एक सवाल का जवाब यह दिया जाता है कि जिसके बारे में तुम पूछते हो, वह हमारी महारानी की छोटी बहिन हैं और यही सबब है कि उनके बगल में सिंहासन के ऊपर बैठी हैं।
नानक––मुझे क्योंकर विश्वास हो कि तुम सच कहती हो?
औरत––मैं धर्म की कसम खाकर कहती हूँ कि यह बात झूठ नहीं है। मानने न मानने का तुम्हें अख्तियार है!
नानक––खैर, अगर ऐसा है तो मैं किसी प्रकार मरना पसन्द नहीं करता।
औरत––(हँस कर) मरना पसन्द न करने से क्या तुम्हारी जान छोड़ दी जायगी?
नानक––बेशक ऐसा ही है। जब तक मैं मरना न मंजूर करूँगा, तुम लोग मुझे मार नहीं सकतीं।
औरत––यह तो हम लोग जानते हैं कि तुम एक भारी कुदरत रखते हो और उसके सबब से बड़े-बड़े काम कर सकते हो, मगर इस जगह तुम्हारे किये कुछ नहीं हो सकता। हाँ, एक बात अगर तुम कबूल करो तो तुम्हारी जान छोड़ दी जायगी, बल्कि