थे, लौटे तो नानक की तरफ देखकर बोले, "इत्तिला कर दी गई, अब तू अन्दर चला जा।"
नानक––मुझे क्या मालूम है कि कहाँ जाना होगा और रास्ता कौन है?
एक––यह मकान तुझे आप ही रास्ता बतावेगा, पूछने की जरूरत नहीं!
लाचार नानक ने चौखट के अन्दर पैर रक्खा और अपने को तीन दर के एक दालान में पाया। घूम कर पीछे की तरफ देखा तो वह दरवाजा बन्द हो गया था जिस राह से इस दालान में आया था। उसने सोचा कि वह इसी जगह में कैद हो गया और अब नहीं निकल सकता, यह सब कार्रवाई केवल इसी के लिए थी। मगर नहीं, उसका विचार ठीक न था, क्योंकि तुरन्त ही उसके सामने का दरवाजा खुला और उधर रोशनी मालूम होने लगी। डरता हुआ नानक आगे बढ़ा और चौखट के अन्दर पैर रक्खा ही था कि दो नौजवान औरतों पर नजर पड़ी जो साफ और सुथरी पोशाक पहने हुए थीं, दोनों ने नानक के दोनों हाथ पकड़ लिये और साथ ले चलीं।
नानक डरा हुआ था, मगर उसने अपने दिल को काबू में रखा, तो भी उसका कलेजा उछल रहा था और दिल में तरह-तरह की बातें पैदा हो रही थीं। कभी तो वह अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो जाता, कभी यह सोचकर कि मैंने कोई कसुर नहीं किया, उसे ढाढ़स होता और कभी सोचता कि जो कुछ होना है वह तो होगा ही, गर किसी तरह उन बातों का पता तो लगे जिनके जाने बिना जी बेचैन हो रहा है कल से जो-जो बातें ताज्जुब की देखने में आई हैं, जब तक उनका असल भेद नहीं खुलता, मेरे हवास दुरुस्त नहीं होते।
वे दोनों औरतें उसे कई दालानों और कोठरियों में घुमाती-फिराती एक ऐनी बारहदरी में ले गईं जिसमें नानक ने कुछ अजब ही तरह का समाँ देखा। यह बारहदरी अच्छी तरह से सजी हुई थी और यहाँ रोशनी भी बखूबी हो रही थी। दरबार का सारा साज-सामान यहाँ मौजूद था। बीच में जड़ाऊ सिंहासन पर एक नौजवान औरत दक्षिणी ढंग की बेशकीमत पोशाक पहने सिर से पैर तक जड़ाऊ जेवरों से लदी हुई बैठी थी। अपनी जिन्दगी में नानक ने ऐसी खूबसूरत औरत कभी नहीं देखी थी। उसे इस बात का विश्वास होना मुश्किल हो गया कि यह औरत इस लोक की रहने वाली है। उसके दाहिनी तरफ सोने की चौकी पर मृगछाला बिछाए हुए वही साधु बैठा था, जिसे नानक ने शाम को नहर वाले कमरे में देखा था। साधु के बाद गोलाकार बीस जड़ाऊ कुर्सियाँ और थीं जिन पर एक से एक बढ़ के खूबसूरत औरतें दक्षिणी ढंग की पोशाक पहने ढाल-तलवार लगाये बैठी थीं। सिंहासन के बाईं तरफ छोटे जड़ाऊ सिंहासन पर रामभोली को उन्हीं लोगों की सी पोशाक पहने ढाल-तलवार लगाये बैठी देख नानक के ताज्जुब की कोई हद न रही, मगर साथ ही इसके यह विश्वास भी हो गया कि अब उसकी जान नहीं जाती। रामभोली की बगल में जड़ाऊ कुर्सी पर वह औरत बैठी थी जिसने नानक के सामने से रामभोली को घोड़े पर भगा दिया था। उसके बाद बीस जड़ाऊ कुर्सियों पर बीस नौजवान औरतें उसी ठाठ से बैठी हुई थीं जैसी सिंहासन के दाहिनी तरफ थीं।