पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२२४

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और बीती हुई बातें उसकी आँखों के सामने इस तरह मालूम होने लगी जैसे आज हुई हैं। अपने बाप की हालत याद कर उसकी आँखें डबडबा आई और कुछ देर तक सिर नीचा किए वह कुछ सोचता रहा। आखिर में उसने एक लम्बी साँस ली और सिर "ओफ! क्या मेरा बाप इन औरतों के हाथ से मारा गया? नहीं, कभी नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मगर इस तस्वीर में ऐसी अवस्था क्यों दिखाई गई है? बेशक दूसरी तरफ वाली तस्वीर भी कुछ ऐसे ही ढंग की होगी और उसका भी सम्बन्ध कुछ मुझ ही से होगा। जी घबराता है, यहाँ बैठना मुश्किल है!" इतना कह नानक उठ खड़ा हुआ और बाहर बरामदे में जाकर टहलने लगा। सूर्य बिल्कुल अस्त हो गये, शाम की पहली अँधेरी चारों तरफ फैल गई और धीरे-धीरे अंधकार का नमूना दिखाने लगी। इस मकान में भी अँधेरा हो गया और नानक सोचने लगा कि यहाँ रोशनी का कोई सामान दिखाई नहीं पड़ता। क्या बाबाजी अँधेरे में ही रहते हैं? ऐसा सुन्दर साफ मकान मगर बालने के लिए दीया तक नहीं और सिवाय एक मृगछाला के, जिस पर बाबाजी बैठते हैं, एक चटाई तक नजर नहीं आती। शायद इसका सबब यह हो कि यहाँ की जमीन बहुत सीफ, चिकनी और धोई हुई है।

इस तरह के सोच-विचार में नानक को दो घण्टे बीत गए। यकायक उसे याद आया कि बाबाजी एक घण्टे का वादा करके गये थे, अब वह अपने ठिकाने आ गये होंगे और वहाँ मुझे न देख न मालूम क्या सोचते होंगे। बिना उनसे मिले और बातचीत किए यहाँ का कुछ हाल मालूम न होगा, चलूँ, देखू तो सही, वे आ गये या नहीं।

नानक उठकर उस कमरे में गया जिसमें बाबाजी से मुलाकात हुई थी, मगर वहाँ सिवाय अंधकार के और कुछ दिखाई न पड़ा। थोड़ी देर तक उसने आँखें फाड़-फाड़ कर अच्छी तरह तरह देखा मगर कुछ मालूम न हुआ। लाचार हो उसने पुकारा–– "बाबाजी!" मगर कुछ जवाब न मिला, उसने और दो दफे पुकारा, मगर कुछ फल न हुआ। आखिर टटोलता हुआ बाबाजी के मृगछाले तक गया, मगर उसे खाली पाकर लौट आया और बाहर बरामदे में, जिसके नीचे चश्मा बह रहा था, आकर बैठ रहा।

घण्टे भर तक चुपचाप सोच-विचार में बैठे रहने के बाद बाबाजी से मिलने की उम्मीद में वह फिर उठा और उस कमरे की तरफ चला। अबकी उसने कमरे का दरवाजा भीतर स बन्द पाया, ताज्जुब और खौफ से काँपता हुआ फिर लौटा और बरामदे में अपने ठिकाने आकर बैठ रहा। इसी फेर में पहर भर से ज्यादा रात गुजर गई और चारों तरफ से जंगल में बोलते हुए दरिन्दे जानवरों की आवाजें आने लगी जिनके खौफ से वह इस लायक न रहा कि मकान के नीचे उतरे, बल्कि बरामदे में रहना भी उसने नापसन्द किया और बगल वाली कोठरी में घुसकर किवाड़ बन्द करके सो रहा। नानक आज दिन भर भूखा रहा और इस समय भी उसे खाने को कुछ न मिला, फिर भला नींद क्यों अनि लगी थी। इसके अतिरिक्त उसने दिन भर में ताज्जुब पैदा करने वाली कई तरह की बातें देखी और सुनी थीं, जो अभी तक उसकी आँखों के सामने घूम रही थीं और नींद की बाधक हो रही थीं। आधी रात बीतने पर उसने और भी ताज्जुब की बातें देखीं।