राजा वीरेन्द्रसिंह से बदला लेने की फिक्र में कई महीने तक घूमता रहा। अब महाराज शिवदत्त का इतना ही मुख्तसिर हाल लिखकर हम इस बयान को समाप्त करते हैं और फिर इन्द्रजीतसिंह के किस्से को छेड़ते हैं।
इन्द्रजीतसिंह के गिरफ्तार होने के बाद उन बनावटी शेरों ने भी अपनी हालत बदली और असली सूरत के ऐयार बन बैठे जिनमें यारअली, बाकरअली और खुदाबख्श मुखिया थे। महाराज शिवदत्त बहुत ही खुश हुआ और समझा कि अब मेरा जमाना फिरा, ईश्वर चाहेगा तो मैं फिर चुनार की गद्दी पाऊँगा और अपने दुश्मनों से पूरा बदला लूँगा।
इन्द्रजीतसिंह को कैद कर वह शिवदत्तगढ़ को ले गया। सभी को ताज्जुब हुआ कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने गिरफ्तार होते समय कुछ उत्पात न मचाया, किसी पर गुस्सा न निकाला, किसी पर हरबा न उठाया, यहाँ तक कि आँखों से रंज, अफसोस या क्रोध भी जाहिर न होने दिया। हकीकत में यह ताज्जुब की बात थी भी कि बहादुर वीरेन्द्रसिंह का शेरदिल लड़का ऐसी हालत में चुप रह जाय और बिना हुज्जत किये बेड़ी पहन ले, मगर नहीं, इसका कोई सबब जरूर है जो आगे चलकर मालूम होगा।
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चुनारगढ़ किले के अन्दर एक कमरे में महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं।
जीतसिंह-भैरों ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपने को इन्द्रजीतसिंह की सूरत बना शिवदत्त के ऐयारों के हाथ फँसाया।
सुरेन्द्रसिंह-शिवदत्त के ऐयारों ने चालाकी तो की थी मगर...
वीरेन्द्रसिंह-बाबाजी शेर पर सवार हो सिद्ध तो बने लेकिन अपना काम सिद्ध न कर सके।
इन्द्रजीतसिंह-मगर जैसे हो, भैरोंसिंह को अब बहुत जल्द छुड़ाना चाहिए।
जीतसिंह-कुमार, घबराओ मत। तुम्हारे दोस्त को किसी तरह की तकलीफ नहीं हो सकती, लेकिन अभी उसका शिवदत्त के यहाँ फँसे ही रहना मुनासिब है। वह बेवकूफ नहीं है, विना मदद के आप ही छूटकर आ सकता है जिस पर पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल, बद्रीनाथ और योतिषीजी उसकी मदद को भेजे ही गये हैं। देखो तो क्या होता है! इतने दिनों तक चुपचाप बैठे रहकर शिवदत्त ने फिर अपनी खराबी कराने पर कमर बाँधी है।
देवीसिंह-कुमारों के साथ जो फौज शिकारगाह में गयी है, उसके लिए अब क्या हुक्म होता है?
जीतसिंह-अभी शिकारगाह से डेरा उठाना मुनासिब नहीं। (तेजसिंह की