पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२०५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
197
 

दारोगा-आज तक महाराज ने भी मेरी ऐसी बेइज्जती नहीं की!

तेजसिंह ने दारोगा को एक लात ऐसी मारी कि बेचारा धम्म से जमीन पर गिर पड़ा। तेजसिंह उसकी छाती पर चढ़ बैठे और बेहोशी की दवा जबर्दस्ती नाक में ठूँस दी। बेचारा दारोगा बेहोश हो गया। तेजसिंह ने दारोगा की कमर से और अपनी कमर से भी चादर खोली और उसी में दारोगा की गठरी बाँध ताली का गुच्छा और रोजनामचे की किताब भी उसी में रख, पीठ पर लाद, तेजी के साथ अपने लश्कर की तरफ रवाना हुए तथा दो पहर दिन चढ़ते-चढ़ते राजा वीरेन्द्रसिंह के खेमे में जा पहुँचे। पहले तो रामानन्द की सुरत देख वीरेन्द्रसिंह चौंके, मगर जब बँधे हुए इशारे से तेजसिंह ने अपने को जाहिर किया तो वे बहुत ही खुश हुए।

3

तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेन्द्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादा हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानन्द की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हँसते-हँसते लोट गये, मगर साथ ही इसके यह सुनकर कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह का पता रोहतासगढ में नहीं लगता, बल्कि मालूम होता है कि वे रोहतासगढ़ में नहीं हैं, राजा वीरेन्द्रसिंह उदास हो गये। तेजसिंह ने उन्हें हर तरह से समझाया और दिलासा दिया। थोड़ी देर बाद तेजसिंह ने अपने दिल की वे सब बातें कहीं जो वे किया चाहते थे। वीरेन्द्रसिंह ने उनकी राय बहुत पसन्द की और बोले-

वीरेन्द्र॰-तुम्हारी कौन-सी ऐसी तरकीब है जिसे मैं पसन्द नहीं कर सकता। हाँ, यह कहो कि इस समय अपने साथ किस ऐयार को ले जाओगे!

तेजसिंह-मुझे तो इस समय कई ऐयारों की जरूरत थी मगर यहाँ केवल चार मौजूद हैं और बाकी सब कुँअर इन्द्रजीतसिंह का पता लगाने गये हैं। खैर, कोई हर्ज नहीं! पण्डित बद्रीनाथ को तो इसी लश्कर में रहने दीजिये, उन्हें किसी दूसरी जगह भेजना मैं मुनासिब नहीं समझता, क्योंकि यहाँ बड़े ही चालाक और पुराने ऐयार का काम है, बाकी ज्योतिषीजी, भैरों और तारा को मैं अपने साथ ले जाऊँगा।

वीरेन्द्र-अच्छी बात है, इन तीनों से तुम्हारा काम बखूबी चलेगा?

तेजसिंह-जी नहीं, मैं तीनों ऐयारों को अपने साथ नहीं रखना चाहता बल्कि भैरों और तारा को तो वहाँ का रास्ता दिखाकर वापस कर दूँगा, इसके बाद वे दोनों थोडे से लड़ाकों को मेरे पास पहुँचा कर फिर आपको या कुँअर आनन्दसिंह को लेकर मेरे पास आवेंगे, तब वह सब कार्रवाई की जाएगी जो मैं आपसे कह चुका हूँ।

वीरेन्द्र॰-और यह दारोगा वाली किताब, जो तुम ले आये हो, क्या होगी?

तेजसिंह-इसे फिर कभी अपने साथ ले जाऊँगा और मौका मिलने पर शुरू से आखिर तक पढ़ जाऊँगा। यही तो एक चीज हाथ लगी है।