महाराज ने अपने कलमदान में से ताली निकाली और खिदमतगार से एक लालटेन मँगवा कर साथ ले ली। तेजसिंह ने रामानन्द की गठरी बाँध पीठ पर लादी। तेजसिंह को साथ लिये हुए महाराज अपने सोने वाले कमरे में गये और दीवार में जड़ी हुई एक आलमारी का ताला खोला। तेजसिंह ने देखा कि दीवार पोली है और उस जगह से नीचे उतरने का एक रास्ता है। रामानन्द की गठरी लिये हुए महाराज के पीछे-पीछे तेजसिंह नीचे उतरे, दालान में पहुँचने के बाद छोटी सी कोठरी में जाकर दरवाजा खोला और बहुत बड़ी बारहदरी में पहुँचे। तेजसिंह ने देखा कि बारहदरी के बीचोंबीच में छोटी सी गद्दी लगाए एक बूढ़ा बैठा कुछ लिख रहा है जो महाराज को देखते ही उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़ कर सामने आया।
महाराज––दारोगा साहब, देखिए आज रामानन्द ने दुश्मन के एक ऐयार को फाँसा है, इसे अपनी हिफाजत में रखिये।
तेजसिंह––(पीठ से गठरी उतार और उसे खोल कर) लीजिए, अब इसे सम्हालिए, अब आप जानिए।
दारोगा––(ताज्जुब से) क्या यह दीवान साहब की सूरत बनाकर आया था?
तेजसिंह––जी हाँ, उसने मुझी को फजूल समझा।
तेजसिंह––(हँसकर) खैर चलो, अब दारोगा साहब इसका बन्दोरस्त कर लेंगे।
तेजसिंह––महाराज, यदि आज्ञा हो तो मैं ठहर जाऊँ और इस नालायक को होश में लाकर अपने मतलब की बातों का कुछ पता लगाऊँ। सरकार को भी अटकने के लिए मैं कहता, परन्तु दरबार का समय बिल्कुल निकल जाने या दरबार न करने से रिआया के दिल में तरह-तरह के शक पैदा होंगे और आजकल ऐसा न होना चाहिए।
महाराज––तुम ठीक कहते हो। अच्छा, मैं जाता हूँ, अपनी ताली साथ लिये जाता हूँ और ताला बन्द करता जाता हूँ। तुम दूसरी राह से दारोगा के साथ अना। (दारोगा की तरफ देखकर) आप भी आइयेगा और अपना रोजनामचा लेते आइयेगा।
तेजसिंह को उसी जगह छोड़ महाराज चले गए। रामानन्द रूपी तेजसिंह को लिये दारोगा साहब अपनी गद्दी पर आये और अपनी जगह तेजसिंह को बैठा कर आप नीचे बैठे। तेजसिंह ने आधे घण्टे तक दारोगा को अपनी बातों में खूब ही उलझाया, इसके बाद यह कहते हुए उठे, "अच्छा, अब इस ऐयार को होश में लाकर मालूम करना चाहिए कि यह कौन है" वे ऐयार के पास आए। अपनी जेब में हाथ डाल लखलखे की डिविया खोजने लगे, आखिर बोले, "ओफ ओह, लखलखे की डिबिया तो दीवानखाने में ही भूल आये, अब क्या किया जाए?"
दारोगा––मेरे पास लखलखे की डिबिया है, हुक्म हो तो लाऊँ?
तेजसिंह––लाइए, मगर आपके लखलखे से यह होश में न आयेगा, क्योंकि जो बेहोशी की दवा इसे दी गई, वह मैंने नये ढंग से बनाई है और उसके लिए लखलखे का नुसखा भी दूसरा है। खैर, लाइये तो मही, शायद काम चल जाए।
"बहुत अच्छा" कहकर दारोगा साहब लखलखा लेने चले गये, इधर निराला पाकर तेजमिह ने दूमरी डिविया जेब से निकाली (जिसमें लाल रंग की कोई बुकनी