घबरा गया और इतना क्यों डरा, वह इसी सोच में परेशान थी। बेचारी कामिनी भी हैरान और डरी हुई थी यहाँ तक कि घण्टा-भर बीत जाने पर भी उन दोनों में कोई बातचीत न हुई। घण्टे भर के बाद वह आदमी तहखाने से निकल कर ऊपर चला आया और कामिनी की तरफ देख कर बोला-"अब तुम लोग नीचे जाओ, मैं जाता हूँ।" इतना कहता हुआ उसी तरह किवाड़ खोलकर चला गया, जिस तरह कामिनी को साथ लिये हुए कमला इस मकान में आई थी।
कमला और कामिनी नीचे तहखाने में जा शेरसिंह के सामने बैठ गईं। शेरसिंह के चेहरे से अभी तक घबराहट और परेशानी गई नहीं थी। बड़ी मुश्कल से थोड़ी देर में उसने होश-हवास दुरुस्त किये और कमला की तरफ देख कर कहा
शेरसिंह-अच्छा; अब हम लोगों को क्या करना चाहिए?
कमला—जो हुक्म हो सो किया जाय। यह आदमी कौन था जिसे देख आप...?
शेरसिंह-था एक आदमी, उसका हाल जानने की कोशिश न करो और न उसका खयाल ही करो, बल्कि उसे बिल्कुल ही भूल जाओ।
उस आदमी के बारे में कमला बहुत-कुछ जानना चाहती थी, मगर अपने चाचा के मुँह से साफ जवाब पाकर दम न मार सकी और दिल की दिल ही में रखने पर लाचार हुई।
शेरसिंह-कमला, तू रोहतासगढ़ जा और दो-तीन दिन में लौटकर वहाँ का जो कुछ हाल हो, मुझसे कह। किशोरी से मिलकर उसे ढाढ़स देना और कहना कि घबराये नहीं। उसी रास्ते से किले के अन्दर बल्कि उस बाग में, जिसमें किशोरी रहती है, चली आना, जिस राह का हाल मैंने तुझसे कहा था। उस राह से आना-जाना कभी किसी को मालूम न होगा।
कमला-बहुत अच्छा, मगर कामिनी के लिए क्या हुक्म होता है? शेरसिंह-मैं इसे ले जाता हूँ, अपने एक दोस्त के सुपुर्द कर दूंगा। वहाँ यह बड़े आराम से रहेगी। जब सब तरफ से फसाद मिट जायगा, मैं इसे ले आऊँगा, तब यह भी अपनी मुराद को पहुँच जायगी।
कमला-जो मर्जी!
तीनों आदमी तहखाने से बाहर निकले और जैसा ऊपर लिखा जा चुका है उसी तरह कोठरियों और दालानों में से होते हुए मकान के बाहर निकल आये।
शेरसिंह-कमला, अब तू जा और कामिनी की तरफ से बेफिक्र रह। मुझसे मिलने के लिए यही ठिकाना मुनासिब है।
कमला-अच्छा, मैं जाती हूँ, मगर यह तो कह दीजिये कि उस आदमी से मझे कहाँ तक होशियार रहना चाहिए जो आपसे मिलने आया था?
शेरसिंह-(कड़ी आवाज में) एक दफे कह तो दिया कि उसका ध्यान भुला दे। उससे होशियार रहने की जरूरत नहीं और न वह तुझे कभी दिखाई देगा।