सवार––नहीं, कोई दूसरा ही आपको लिए जाता था, मैंने छुड़ाया है।
कुमार––(चारों तरफ देखकर) जब तुमने मुझे किसी दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है तो स्वयं तलवार लेकर सामने क्यों खड़े हो गये?
सवार––आपकी बहादुरी और दिलावरी की बहुत-कुछ तारीफ सुनी है, लड़ने का हौसला रखता हूँ।
ममार––मेरे पास कोई हरबा न होने पर भी लड़ने को तैयार हूँ। वार करो।
सवार––जो आदमी रथ पर सवार करके आपको लिए जाता था, उसकी ढाल-तलवार मैं ले आया हूँ, (हाथ का इशारा करके) वह देखिए, आपकी बगल में मौजूद है, उठा लीजिए और मुकाबला कीजिए। मैं खाली हाथ आपसे लड़ना नहीं चाहता।
कुँअर इन्द्रजीतसिंह ढाल-तलवार उठा पैतरे के साथ उस नकाबपोश सवार के मुकाबले में खड़े हो गये। थोड़ी देर तक लड़ाई होती रही। कुमार को मालूम हो गया कि यह दुश्मनो के तौर पर नहीं लड़ता। ललकार कर बोले, "तुम लड़ते हो या खिलवाड़ करते हो?"
सवार––कोई दुश्मनी तो आपसे है नहीं!
कुमार––फिर लड़ने को तैयार क्यों हुए?
सवार––इसलिए कि आपके बदन में जरा फुर्ती आये। बहुत देर तक बेहोश पड़े रहने से रगों में सुस्ती आ गयी होगी। अगर आपसे दुश्मनी रहती तो आपको दुश्मन के हाथ से ही क्यों बचाते?
कुमार––तो क्या तुम हमारे दोस्त हो?
सवार––मैं यह भी नहीं कह सकता।
कुमार––जरूर तुम हमारे दोस्त हो अगर दुश्मन के हाथ से हमें बचाया।
सवार––क्या इस बारे में कोई शक है कि मैंने आपकी जान बचायी?
कुमार––जरूर शक है। मैं कैसे विश्वास कर सकता हूँ कि तुम मुझे लाये हो या कोई दूसरा?
सवार––इसके लिए मैं तीन सबूत दूँगा। एक तो, अगर मैं दुश्मन होता तो बेहोशी में आपको मार डालता।
कुमार––बेशक, और दो सबूत कौन से हैं?
सवार––जरा ठहरिये, मैं अभी आता हूँ तो ये दोनों सबूत भी देता हूँ।
इतना कह वह नकाबपोश सवार झट अपने घोड़े पर सवार हुआ और वहाँ पहुँचा जहाँ वह रथ था, जिस पर कुमार लाये गये थे। एक घोड़ा मरा हुआ पड़ा था, दूसरा बागडोर से बँधा अलग खड़ा था। उस ऐयार की लाश भी उसी जगह पड़ी हुई थी जो कुमार को बेहोश करके उठा लाया था। पीछे की तरफ थोड़ी दूर पर सारथी की लाश थी।
वह नकाबपोश सवार अपने घोड़े से उतर पड़ा और जोर लगाकर किसी तरह उस रथ को उलट दिया जो अभी तक खड़ा था। फिर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए? उसकी निगाह सारथी की लाश पर पड़ी, वहाँ गया और उस लाश को घसीट